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माँ विश्वंभरी तीर्थ यात्रा धाम में विजयादशमी के शुभ अवसर पर किया गया भव्य शस्त्र पूजा का आयोजन

वीर-वीरांगनाओं द्वारा प्रस्तुत वीरतापूर्ण कलाकृतियाँ उपस्थित सभी लोगों के लिए मुख्य आकर्षण का केंद्र बनीं, 
स्टार मीडिया न्यूज 
वलसाड जिला । वलसाड जिला के राबड़ा गांव में स्थित सुप्रसिद्ध माँ विश्वंभरी तीर्थ यात्रा धाम में विजयादशमी के शुभ अवसर पर भव्य शस्त्र पूजा का आयोजन किया गया। इस अवसर पर धाम के संस्थापक श्री महापात्र के मार्गदर्शन में आयोजित इस शस्त्र पूजा में बड़ी संख्या में वीर – वीरांगनाओं ने भाग लिया। शस्त्रों का पूजन करने के बाद वीर – वीरांगनाओं ने शस्त्रों का प्रदर्शन करते हुए अपनी कलाकौशल से उपस्थित जनसमूहों को आश्चर्यचकित कर दिया। इस अवसर धाम के प्रणेता श्री महापात्र ने कहा कि विजयादशमी को दशहरा के नाम से भी जाना जाता है, उस समय जब श्री राम ने रावण पर विजय प्राप्त किया था। विजयादशमी एक महत्वपूर्ण संदेश देती है कि जो नैतिकता में विश्वास करता है और धर्म के मार्ग पर चलता है, वह अंत में विजयी होता है। उन्होंने कहा कि इस दिन शस्त्रपूजन यह दर्शाता है कि सत्य और धर्म की रक्षा के लिए शस्त्रों का प्रयोग आवश्यक है तथा शस्त्रों का सम्मान किया जाना चाहिए। हथियार हिंसा का साधन नहीं हैं, बल्कि न्याय और सत्य की रक्षा के लिए हैं।
 वर्तमान समय में सच्चे धर्म व कर्म का उचित मार्गदर्शन न होने के कारण आज का मानव असत्य को सत्य व अधर्म को धर्म मानकर असत्य व अधर्म के मार्ग पर भटक रहा है। जिसके कारण आज अधिकांश लोग मुफ्त में खाने की प्रवृत्ति, बेईमान, कर्महीन, धोखेबाज तथा कामी पाए जाते हैं। इस धरती पर झूठ का पनपना आज 98% तक पहुंच गया है और सत्य केवल 2% ही बचा है। सारी दुनिया में अराजकता, लूटपाट, भ्रष्टाचार, दुराचार, पापाचार और अधर्म का राज है। असत्य पर विजय पाने के लिए, सत्य धर्म व कर्म की स्थापना के लिए शास्त्र व शास्त्र की आवश्यकता सर्वथा मेहसूस की जा रही है।
 माँ विश्वंम्भरी की क्रांतिकारी विचारधारा पूरे विश्व में फैले इस शुभ कामना के साथ विजयादशमी के शुभ दिन पर धाम के संस्थापक श्री महापात्र के मार्गदर्शन में वलसाड के राबाडा गांव स्थित माँ विश्वंम्भरी तीर्थ यात्रा धाम पर भव्य शस्त्रपूजन कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें गुजरात के विभिन्न जिलों और पूरे भारत से हजारों की संख्या में श्रद्धालु इस अवसर पर उपस्थित हुए और शस्त्रपूजन का लाभ उठाया।  कार्यक्रम में प्रस्तुत वीर और वीरांगनाओं की वीरतापूर्ण कलाकृतियाँ उपस्थित सभी लोगों का मुख्य आकर्षण बनीं। विशेष रूप से, जब वीरांगनाओं ने तलवार की कलाकृतियाँ प्रदर्शित कीं, तो उन्हें वास्तव में शक्तिस्वरूपा दुर्गा के अवतार के रूप में चित्रित किया गया।
वर्तमान में श्री महापात्र ने समाज में कमजोर समझी जाने वाली महिलाएं सशक्तिकरण हों और शौर्यवान बने, इसके लिए श्री महापात्र अथक प्रयास कर रहे हैं। सत्य धर्म-कर्म की स्थापना और विश्व के कल्याण के लिए परमशक्ति में विश्वंम्भरी ने श्री महापात्र को एक सरल और सटीक उपाय बताया है कि प्रत्येक मनुष्य को “अंधश्रद्धा छोड़कर घर की तरफ लौटें और अपने घर को ही एक पवित्र मंदिर बनाएं” अर्थात व्यक्ति अंधश्रद्धा और व्यक्तिगत पूजा छोड़कर घर को ही एक पवित्र मंदिर बनाकर शक्ति पूजा को अपनाएं। श्री महापात्रा के मार्गदर्शन से आज दुनिया भर में असंख्य घर मंदिर बन गये हैं।  इससे इन परिवारों में सच्ची समझ और एकजुटता जागृत हुई है। लोग सत्य धर्म-कर्म के पदचिन्हों पर चलकर कर्तव्यपरायण बनने लगे हैं। घरमंदिर बने ऐसे आदर्श परिवारों के कारण ही आज आदर्श पारिवारिक एवं सामाजिक व्यवस्था पुनः स्थापित होने लगी है। विजयादशमी पर शस्त्रपूजन के पीछे दार्शनिक और ऐतिहासिक महत्व है।
 विजय का प्रतीक: विजयादशमी को दशहरा के नाम से भी जाना जाता है, जो तब मनाया जाता है जब भगवान राम ने रावण को हराया था। इस दिन शस्त्रपूजन यह दर्शाता है कि सत्य और धर्म की रक्षा के लिए शस्त्रों का प्रयोग आवश्यक है तथा शस्त्रों का सम्मान किया जाना चाहिए।
 शौर्य और पराक्रम का प्रतीक : शस्त्रपूजन शौर्य और पराक्रम का प्रतीक है। इस प्रथा का पालन उस समय के राजाओं और योद्धाओं द्वारा किया जाता था, जो खुद को युद्ध के लिए तैयार रखने और योद्धा के रूप में अपने कर्तव्य को याद रखने के लिए हथियारों की पूजा करते थे।
 धर्म और न्याय की रक्षा: शस्त्रों की पूजा यह स्मरण दिलाती है कि शस्त्रों का मूल उद्देश्य केवल धर्म और न्याय की रक्षा करना है। शस्त्रों का प्रयोग केवल शत्रु के विरुद्ध ही किया जाना चाहिए और वह भी केवल आत्मरक्षा अथवा अनीति के विरुद्ध।
 श्री दुर्गा का आशीर्वाद: नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा की पूजा की जाती है और शस्त्रपूजन भी मां दुर्गा के उस रूप के प्रति सम्मान प्रदर्शित करता है, जिन्होंने राक्षस महिषासुर का विनाश किया था। हथियार न केवल बाहरी लड़ाई के लिए हैं, बल्कि आंतरिक लड़ाई के लिए भी हैं। शास्त्रपूजन से पता चलता है कि व्यक्ति को अपने आंतरिक शत्रुओं, जैसे क्रोध, वासना, लालच और अहंकार को हराने के लिए बाहरी हथियारों के अलावा आध्यात्मिक हथियारों का भी उपयोग करना चाहिए। अन्न और औजस का सम्मान: विजयादशमी के दिन खेती में इस्तेमाल होने वाले हथियार, जैसे हल, फरसा आदि की भी पूजा की जाती है। यह प्रथा यह समझ देता है कि शांतिपूर्ण जीवन के लिए इन हथियारों का उपयोग आवश्यक है, और यह जीवन का एक महत्वपूर्ण उपकरण भी है।
 नैतिकता और धर्म की विजय: विजयादशमी एक महत्वपूर्ण संदेश देती है कि जो नैतिकता में विश्वास करता है और धर्म के मार्ग पर चलता है, वह अंततः विजयी होता है। हथियार न केवल हिंसा के साधन हैं, बल्कि न्याय और सत्य की रक्षा के लिए भी हैं। इस प्रकार विजयादशमी पर शस्त्रपूजन वीरता, सुरक्षा और न्याय के सिद्धांतों की पूजा है, जिसे सीखने और धर्म के मार्ग पर चलने वाले व्यक्तियों द्वारा श्रद्धापूर्वक मनाया जाता है।

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