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वलसाड जिला में तेजी से बढ़ रहे हैं नाबालिग लड़कियों के मां बनने के मामले

पिछले 9 महीने में 12 से 17 साल की 907 लड़कियां बन चुकी हैं मां, 
स्टार मीडिया न्यूज 
वलसाड जिला। वलसाड जिला के धरमपुर और कपराडा तहसील के आदिवासी गांवों में कम उम्र में मां बनती किशोरियों में जागरूकता की कमी है या प्रशासन इस मामले में फेल साबित हुई है। परंतु सचाई यह है कि 12-17 साल की लड़कियों में मां बनने के मामले बढ़ गए हैं। गुजरात के आदिवासी बहुल वलसाड जिला में नाबालिग लड़कियों के मां बनने के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। हाल ही में सामने आए आंकड़ों के अनुसार, पिछले 9 महीने में 12 से 17 साल की 907 लड़कियां मां बन चुकी हैं। इसी अवधि में 15 से 19 वर्ष तक की 2,175 लड़कियां भी मातृत्व का अनुभव कर चुकी हैं। इन मामलों में सबसे अधिक कपराडा और धरमपुर क्षेत्रों से हैं। इनमें दो मामले तो ऐसे भी हैं, जहां 12 साल की लड़कियां मां बनी हैं। हालांकि, घरों में प्रसव के कारण जच्चा-बच्चा की सेहत, मौत और गर्भपात के आंकड़े जुटाना मुश्किल हो गया है। एक डॉक्टर ने पहचान न बताने की शर्त पर यह पुष्टि की है कि कम उम्र की लड़कियों के प्रसव के मामले सामने आए हैं।
इस प्रकार के मामलों में आदिवासी लड़के-लड़कियां बिना विवाह के एक साथ रहते हैं और यह परंपरागत रूप से कोई गलत नहीं माना जाता। समाज में ऐसे किस्से भी होते हैं, जहां माता-पिता के विवाह में उनके बच्चे बाराती के तौर पर शामिल होते हैं। इन परंपराओं को खत्म करने के लिए साक्षरता और जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं, लेकिन अब तक इसमें सफलता बहुत कम मिली है। वलसाड जिला के धरमपुर और कपराडा तहसील के भीतरी इलाकों में जहां पूरी तरह से आदिवासी आबादी है। और यहां सरकार द्वारा गांव-गांव तक विकास पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है। हालाँकि सामाजिक दृष्टिकोण से देखें तो इस क्षेत्र में सामाजिक कुरीतियाँ आज भी  व्याप्त हैं। जिसमें वलसाड के कपराडा तालुका में 15 से 18 साल की लड़कियों और नाबालिगों के मां बनने के 907 मामले सरकारी रजिस्टर में दर्ज किए गए हैं।
लड़के और लड़कियों का परिचय कम उम्र में ही हो जाता है। इसे स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी भी मान रहे हैं। इसके अलावा, कपराडा तहसील में हर साल लगभग 7000 मातृत्व या सरकारी रजिस्टर में पंजीकृत की जाती हैं। बताया जाता है कि उनमें से अधिकतर 15 से 18 वर्ष की उम्र के बीच की किशोरियां गर्भवती होती हैं। इसलिए सरकारी डॉक्टर भी गर्भवती किशोरियों या महिलाओं को आदिवासी इलाके की इस सामाजिक परंपरा कुप्रथा से होने वाली परेशानी बता रहे हैं। सबसे पहले तो इन आदिवासी इलाकों में वर्षों से चली आ रही सामाजिक व्यवस्था और कुप्रथा परंपरा है। लड़के और लड़कियों का परिचय कम उम्र में ही हो जाता है। इसके अलावा बच्चों की मृत्यु की बढ़ती दर भी समाज के लिए चिंता का विषय है। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण वे परिवार की सहमति से बिना शादी किए लिव-इन रिलेशनशिप में किशोर किशोरी रहते हैं। जागरुकता की कमी और लड़कपन के कारण  कम उम्र में ही किशोरियां मां बन जाती है। वलसाड जिला के कपराडा और धरमपुर सहित अन्य विस्तारों में बिना शादी के कम उम्र में लिव-इन रिलेशनशिप के कारण कम उम्र में मां बनने की बढ़ती संख्या भी समाज के लिए चिंता का विषय है।
कम उम्र में मां बनने के बाद की समस्याएं:-
एक 14 साल की लड़की ने बताया कि गर्भवस्था और प्रसव के बाद उसे खून की कमी समेत अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ा। साथ ही उसकी पढ़ाई भी छूट गई। लड़की के माता-पिता ने उसकी स्थिति को लेकर चिंता जताते हुए अनुरोध किया है कि उनकी बेटी का विवाह 18 साल के बाद ही किया जाए ताकि उसे मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार होने का समय मिले। इस बढ़ते हुए मामले ने समाज में बाल विवाह, स्वास्थ्य समस्याओं और नाबालिग मातृत्व की गंभीरता को उजागर किया है और अब इस पर कड़े कदम उठाने की आवश्यकता है।
आधुनिक युग में आज भी बाल विवाह के मामले सामने आ रहे हैं:-
 हालाँकि, सदियों से भारत में सरकार और सामाजिक कार्यकर्ता बाल विवाह को खत्म करने के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं। देश भर में अभियान भी चलाए जाते हैं। ताकि भारत में इस कुप्रथा को खत्म किया जा सके, लेकिन कड़वी हकीकत यह है कि आज भी कम उम्र में लड़कियों की शादी हो रही है और वह कम उम्र में ही मां बनती जा रही हैं। फिर भी इस हकीकत का प्रतिबिंब भारत के विकसित गुजरात में देखने को क्यों मिल रहा है ?
नाबालिगों के मां बनने के 907 मामले सरकारी रजिस्टर में दर्ज किये गये:-
लड़के और लड़कियों का परिचय कम उम्र में ही हो जाता है। बच्चों की मृत्यु की बढ़ती दर भी समाज के लिए चिंता का विषय है। वहीं नाबालिगों के मां बनने के 907 मामले सरकारी रजिस्टर में दर्ज किये गये है। विश्वसनीय सूत्रों द्वारा मिली जानकारी के मुताबिक, गुजरात राज्य के वलसाड जिला में एक साल में 1500 से ज्यादा किशोरियों के मां बनने के चौंकाने वाले आंकड़े दर्ज हुए है।

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