सामरपाड़ा मुख्य प्राथमिक विद्यालय के दो बाल विज्ञान के छात्रों ने वर्मीवाश का इनोवेटिव प्रोजेक्ट प्रस्तुत किया,
गाय के गोबर, गोमूत्र, केंचुए और मिट्टी सहित सामग्रियों का उपयोग करके आसानी से बनाया जा सकता है वर्मीवॉश,
स्टार मीडिया न्यूज
वलसाड जिला। वर्तमान समय विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी का है। पहले कृषि क्षेत्र में किसानों ने अधिक आय अर्जित करने के लिए पारंपरिक खेती को छोड़कर आधुनिक उपकरणों का उपयोग किया। परंतु रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अंधाधुंध उपयोग के कारण मानव स्वास्थ्य के साथ समझौता हो रहा है और मिट्टी की उर्वरता भी कम हो रही है। ऐसा करने के लिए राज्यपाल आचार्य देवव्रत जी द्वारा किसानों को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष मार्गदर्शन दिया जा रहा है। वहीं उनके नेतृत्व में वलसाड जिला में प्राकृतिक खेती एक जन आंदोलन के रूप में विकसित हुई है। अब स्कूली बच्चों को भी कम उम्र से ही जैविक खेती का महत्व सिखाया जा रहा है। जिसके अंतर्गत वलसाड जिला के पारडी तालुका के सामरपाड़ा गांव के मुख्य प्राथमिक विद्यालय के दो बाल वैज्ञानिकों द्वारा इनोवेटिव प्राकृतिक खेती प्रोजेक्ट प्रस्तुत की गई है।
जहरीली रासायनिक खेती से मनुष्य को हानिकारक खाद्य पदार्थों के साथ-साथ नई-नई बीमारियाँ भी मिल रही हैं। यदि यही स्थिति रही तो मानव जीवन में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। इन विभिन्न समस्याओं के समाधान के लिए जैविक खेती सबसे अच्छा विकल्प है। नये पद्धति से जैविक खेती करने से स्वस्थ सब्जियाँ और अनाज मिलेंगे और कीटनाशकों और रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से भी बचा जा सकेगा। पारडी के सामरपाड़ा गांव के मुख्य प्राथमिक विद्यालय में कक्षा 7वीं की छात्रा नीति रमणभाई आहीर और कक्षा 8वीं की छात्रा आयशा इलियास शेख ने इनोवेटिव और प्राकृतिक खेती प्रोजेक्ट प्रस्तुत की है। दोनों छात्रों ने बताया कि वर्मीवाश बनाने में गाय का गोबर, मिट्टी, केंचुआ, रेती, कपची, पत्थर और ईंट के टुकड़ों का उपयोग किया जाता है। बनाने की विधि के बारे में उनका कहना है कि सबसे पहले एक बैरल लें, अब उसमें एक छेद करें और उसमें एक नल लगा दें ताकि बैरल से निकलने वाले तरल को नीचे रखे एक कंटेनर में इकट्ठा किया जा सके, अब नीचे ईंट के टुकड़े डाल दें। इस बैरल के ऊपर मोटी रेती और कपची डालें और इसके ऊपर मिट्टी की एक परत बना दें। इस मिट्टी में कुछ दिनों तक बाहर रखा हुआ गोबर डाल दें, अब इस मिश्रण में केंचुए मिला दें और ऊपर से बैरल को ढक दें। अब इस पाइप के ऊपर पानी डालें ताकि केंचुए को गर्मी न लगे और यह पानी केंचुए के शरीर से तरल पदार्थ और मल को धोकर अलग-अलग परतों से गुजरता हुआ नीचे जमा हो जाता है। अब नल चालू कर दिया जाता है और इस तरल को नीचे एक बर्तन में एकत्र कर लिया जाता है जिसे “वर्मीवॉश” कहा जाता है। इस वर्मीवॉश के उपयोग की विधि बताते हुए बाल वैज्ञानिक नीति आहीर और आयशा शेख आगे बताती हैं कि, एक लीटर वर्मीवॉश में 15 लीटर पानी मिलाएं, इसमें 5 से 8 लीटर गौमूत्र मिलाएं, अब इस मिश्रण को एक पंप में भरकर छिड़का जाता है यदि इस मिश्रण का फसल पर छिड़काव किया जाए तो फसल को नुकसान पहुंचाने वाले कीट-पतंगें नहीं लगेंगे और फसल सुरक्षित रहेगी। किसानों को हानिकारक कीटनाशकों का छिड़काव नहीं करना पड़ेगा। यदि यही मिश्रण पौधे की जड़ों में दिया जाए तो पौधे को आवश्यक पोषक तत्व मिलेंगे जिससे पौधे की जड़ें मजबूत होंगी। एक लीटर वर्मीवॉश से 25 लीटर तरल बनता है। यदि यह उपचार हर 15-15 दिन पर किया जाए तो कीटनाशकों का छिड़काव करने की जरूरत नहीं पड़ती।
वर्मीवॉश के फायदों के बारे में दोनों बाल वैज्ञानिकों का कहना है कि वर्मीवॉश लिक्विड में फफूंदनाशी और कीटनाशक गुण होते हैं। इसलिए इसका छिड़काव दवा के रूप में किया जा सकता है। जिसे बनाने के लिए प्लास्टिक की बोतल, वेलवेट पेपर, रंगीन पेपर, एमएस पेपर और नल की आवश्यकता होती है। जिसकी अनुमानित कीमत मात्र 80 रुपये है। उपयोग में आसान है क्योंकि यह सस्ता और गैर विषैला है। इसके प्रयोग से उत्पादन 10 से 15 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। रासायनिक खाद और कीटनाशकों का प्रयोग नहीं करना पड़ता, इसलिए लागत भी बच जाती है। इससे मानव स्वास्थ्य में लाभ होने के साथ-साथ बीमारियों की संख्या में भी कमी आएगी। इस प्रकार, बच्चों को स्कूल स्तर से ही प्राकृतिक खेती का पाठ भी पढ़ाया जा रहा है ताकि अगली पीढ़ी जहरीली रासायनिक खेती से हटकर जहर मुक्त प्राकृतिक खेती की ओर बढ़ सके।