
पहाड़ी क्षेत्र में भूमि समतल नहीं होने से मानसून का पानी बह जाता है, इसलिए वर्ष के दौरान नदी के पानी से की जाती है खेती:-

राज्य सरकार द्वारा मॉडल फार्म के लिए 13,500 रूपए और देशी गाय के पालन-पोषण के लिए दर महीने 900 रूपया सहायता मिलता है:-

राज्य सरकार द्वारा कपराडा तालुका स्तर का सर्वश्रेष्ठ किसान का अवार्ड भी लाहनुभाई धूम को दिया गया था:-

स्टार मीडिया न्यूज
श्यामजी मिश्रा/ जिग्नेश सोलंकी
वलसाड जिला। पूरा देश अब प्राकृतिक खेती की ओर बढ़ रहा है। वहीं वलसाड जिला के संपूर्ण आदिवासी ऐसे कपराडा तालुका के आंतरिक व पहाड़ी क्षेत्र में रहने वाले किसान भी प्राकृतिक खेती को अपनाकर अपने परिवार और अन्य लोगों को स्वस्थ जीवन प्रदान करने के परोपकारी कार्य में शामिल हो गए हैं। आपको बता दें कि कपराडा तालुका में एक पहाड़ी पर स्थित कोलवेरा गांव के आदिवासी किसान लाहनुभाई खंडूभाई धूम, जो कई विपरीत परिस्थितियों से उबरने के बाद पहाड़ी पर भी सफलतापूर्वक प्राकृतिक खेती करके कई किसानों के लिए प्रेरणा बन गए हैं।

कपराडा के कोलवेरा गांव के पटेल फलिया(बस्ती) में रहने वाले प्रगतिशील किसान लाहनुभाई धूम कहते हैं कि ”मैं अपनी सात एकड़ जमीन पर शकरकंद, मक्का, ज्वार, तुवर, मूंगफली, आम, आम कलम, मूंग, चना, वाल और चोणी फसल की खेती करता हूं। दशकों पहले हम रासायनिक खेती करते थे लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्रभाई भाई मोदी ने पूरे देश को प्राकृतिक खेती का महत्व समझाया और हमें भी प्राकृतिक खेती करने की प्रेरणा मिली। वहीं गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेन्द्रभाई पटेल और गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने गुजरात में प्राकृतिक खेती के अभियान का समर्थन किया है। इसके साथ ही आत्मा परियोजना के माध्यम से गांव-गांव में किसानों को प्राकृतिक खेती पर सीधा मार्गदर्शन एवं प्रशिक्षण दिया जा रहा है। जिसमें मैं भी शामिल हुआ और स्वस्थ प्राकृतिक खेती शुरू की। जिसका परिणाम है कि आज हमारे खेतों में प्राकृतिक खेती द्वारा समृद्ध खेती हो रही है। मेरी आर्थिक आय भी बढ़ी है और जीवन स्तर में भी सुधार हुआ है। वर्तमान में एक एकड़ भूमि पर शकरकंद की खेती की है। जो 800 रुपये प्रति मन के हिसाब से बिकता है। मैं साल में दो बार फसल काटता हूं। और नानापोंढ़ा बाजार में कृषि उपज की अच्छी कीमत पर बिक जाती है, इसलिए फसल को बेचने को लेकर बाजार का भी चिंता नहीं है।

इसके अलावा लाहनुभाई कहते हैं कि मैंने कृषि फसलों में रासायनिक उर्वरकों का छिड़काव पूरी तरह से बंद कर दिया है और मैं खुद घर पर जीवामृत और घन जीवामृत बनाता हूं। अगर फसल में कोई कीट लग जाए तो अग्निअस्त्र और निमास्त्र खुद बनाकर छिड़कता हूं। इस संबंध में आत्मा परियोजना की ओर से पारडी के किसान प्रशिक्षण केंद्र और वघई में किसान गोष्ठी में प्रशिक्षण भी दिया गया था। जबकि अंभेटी के कृषि विज्ञान केन्द्र द्वारा भी प्राकृतिक कृषि पद्धतियों से मबालख फसल कैसे उगायें इस पर विशेष मार्गदर्शन भी दिया जाता है। चूंकि पहाड़ी क्षेत्र में भूमि समतल नहीं है, इसलिए मानसून का पानी बर्बाद हो जाता है, इसलिए हम साल भर नदी के पानी से खेती करते हैं। राज्य सरकार द्वारा मॉडल फार्म हेतु 13,500 रूपए की सहायता भी मिली। इसके अलावा देशी गाय के रखरखाव के लिए दर महीने 900 रूपए की सहायता भी मिलती है। प्राकृतिक खेती में मेरे द्वारा योगदान के लिए मुझे राज्य सरकार द्वारा तालुका स्तर के सर्वश्रेष्ठ किसान पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है। जिससे प्राकृतिक खेती में अधिक से अधिक प्रगति करके अन्य किसान भी रासायनिक खेती को छोड़कर प्राकृतिक खेती की ओर मुड़े, इस दिशा में कार्य करने का उत्साह बढ़ा और प्रेरणा भी मिला है। जिसके लिए मैं राज्य सरकार का आभार व्यक्त करता हूं।