एक संवाद लंकेश के साथ – निंबाराम के पुरोहित
आज सुबह-सुबह रास्ते में एक दस सिर वाला हट्टा कट्टा बंदा अचानक मेरी बाइक के आगे आ गया। जैसे तैसे ब्रेक लगाई और पूछा..
क्या अंकल 20-20 आँखें हैं..फिर भी दिखाई नहीं देता क्या ?
जवाब मिला- थोड़ा तमीज से बोलो, हम लंकेश्वर हैं लंकेश्वर (रावण)
ओह अच्छा ! तो आप ही हो श्रीमान रावण ! एक बात बताओ..ये दस-दस मुंह संभालने में थोड़ा मुश्किल नहीं होता क्या ? मेरा मतलब शैंम्पू वगैरह करते समय..यू नो…और कभी सिर दर्द शुरू हो जाए तो पता करना मुश्किल हो जाता होगा कि कौन से सिर में दर्द हो रहा है…?
रावण- पहले ये बताओ तुम लोग कैसे डील करते हो इतने सारे मुखौटों से ? हर रोज चेहरे पर एक नया मुखौटा , उस पर एक और मुखौटा , उस पर एक और ! यार एक ही मुंह पर इतने नकाब…थक नहीं जाते ?
अरे-अरे आप तो सिरियस ले गए…मैं तो वैसे ही… अच्छा ये बताओ मैंने सुना है आप कुछ ज्यादा ही अहंकारी हो ?
रावण- हाहाहाहाहाहाहा
अब इसमे हंसने वाली क्या बात थी , कोई जोक मारा है क्या मैंने ?
रावण- और नहीं तो क्या…एक ‘कलियुगी इंसान’ के मुंह से ये शब्द सुनकर हंसी नहीं आएगी तो और क्या होगा ? तुम लोग साले एक छोटी मोटी डिग्री क्या ले ली, अँग्रेजी के दो-पवरी अक्षर क्या सीख ली कि यूं इतरा के चलते हो जैसे तुमसे बड़ा ज्ञानी और कोई है ही नहीं इस धरती पर ! एक तुम ही समझदार ,बाकी सब गँवार ! और मैंने चारों वेद पढ़ के उन पर टीका टिप्पणी तक कर दी ! चंद्रमा की रोशनी से खाना पकवा लिया ! इतने-इतने कलोन बना डाले, दुनिया का पहला विमान और खरे सोने की लंका बनवा दी ! तो थोड़ा बहुत घमंड कर भी लिया तो कौन सी आफत आ पड़ी है ?
चलो ठीक है बॉस,ये तो जस्टिफ़ाई कर दिया आपने, लेकिन…लेकिन गुस्सा आने पर बदला चुकाने को किसी की बीवी ही उठा के ले गए ! ससुरा मजाक है का ? बीवी न हुई छोटी मोटी साइकल हो गयी…दिल किया, उठा ले गए बताओ !
(एक पल के लिए रावण महाशय तनिक सोच में पड़ गए, मेरे चेहरे पर एक विजयी मुस्कान आने ही वाली थी कि फिर वही इरिटेटिंग अट्टहास )
हाहाहाहाहाहहह लुक हू इज़ सेइंग ! अबे मैंने श्री राम की बीवी को उठाया, मानता हूँ बहुत बड़ा पाप किया और उसका परिणाम भी भुगता ,पर मेघनाथ की कसम-कभी जबरदस्ती तो दूर हाथ तक नहीं लगाया, उनकी गरिमा को रत्ती भर भी ठेस नहीं पहुंचाई और तुम.. तुम कलियुगी इंसान !! छोटी-छोटी बच्चियों तक को नहीं बख्शते ! अपनी हवस के लिए किसी भी लड़की को शिकार बना लेते हो…कभी जबरदस्ती तो कभी झूठे वादों, छलावों से ! अरे तुम दरिंदों के पास कोई नैतिक अधिकार बचा भी है, मेरे चरित्र पर ऊंगली उठाने का ? फोकट में ही !
इस बार शर्म से सिर झुकाने की बारी मेरी थी…पर मैं भी ठहरा पक्का ‘इंसान’ ! मज़ाक उड़ाते हुए बोला…अरे जाओ-जाओ अंकल ! दशहरा आज ही है, सारी हेकड़ी निकाल देंगे देखना।
(और इस बार लंकवेशवर जी इतनी ज़ोर से हँसे कि मैं गिरते-गिरते बचा !)
यार तुम तो नवजोत सिंह सिद्धू के भी बाप हो ,बिना बात इतनी ज़ोर-जोर से काहे को हँसते हो…ऊपर से एक भी नहीं दस-दस मुंह लेके, कान का पर्दा फट जायेगा अगर जरा और ज़ोर से हंसे तो !
रावण- यार तुम बात ही ऐसी करते हो । वैसे कमाल है तुम इंसानों की भी..विज्ञान में तो बहुत तरक्की कर ली पर कॉमन सैंन्स ढेले का भी नहीं ! हर साल मेरा पुतला भर जला के खुश हो जाते हो. घुटन मुझे होती है तुम लोगों की लेवल देखकर…मतलब जानते नहीं दशहरा का ,बदनाम मुझे हर साल फालतू मे करते हो।
किसी दिन टाइम निकाल कर तुम सब अपने अंदर के रावण को देख सको तो देखो। पता चले कि क्या तुम मुझे जलाने लायक हो ? खैर जलाना तो छोड़ो ! तुम आज के तुच्छ इंसान मेरे पैर छूने लायक तक नहीं..!
बाकी दिल बहलाने के लिए कुछ भी कहो और करो। चलो ठीक है भाई तुम दशहरा इंज्वाय करो और हम चलते हैं। ये बोल कर रावण अकंल निकल लिए लेकिन हम सब इंसानों की औकात समझा गए। हम लोग हर साल अधर्म पर धर्म की विजय। असत्य पर सत्य की विजय। बुराई पर अच्छाई की विजय। पाप पर पुण्य की विजय। अत्याचार पर सदाचार की विजय। क्रोध पर क्षमा की विजय। अज्ञान पर ज्ञान की विजय। रावण पर श्रीराम की विजय के प्रतीक पावन पर्व विजयादशमी मनाते हैं, परंतु सुधरने का नाम नहीं लेते। जय श्री राम