वर्तमान समय में महाराष्ट्र व हरियाणा या यूं कहें कि पूरा देश इलेक्शन मोड में है। मोहल्ला स्तर के नेता एकएक कद्दावर हो गए हैं। उनके विमर्श का लेवल नाली-खड़ंजे की राजनीति से उठकर देश-विदेश तक जा पहुंचा है। कहते हैं बिना नेता के समाज नहीं होता है और नेता के लिए समाज जरूरी होता है। अच्छा नेता अपने गुणों से और अपनी उपयोगिता के कारण पूजनीय होता है। गणपति वही हो सकता है जो हाथी जैसे बड़े बड़े कान रखता हो ताकि दुनिया की सारी आवाज उसकी कानों को सुनाई दे। उसकी आंखें इतनी छोटी हों कि दुनिया की बुराई वो कम से कम देखे। उसका पेट इतना बड़ा हो कि सबकुछ सुन व समझकर पेट में रख ले। इस प्राचीन गणपति को हमारे शास्त्रों में नेता कहा गया है। नेता बड़ा पुराना शब्द है, उस समय राजा और पुरोहित ही नेता होते थे। मगर आज तो हर गली-मोहल्ले में तरह – तरह के नेता पैदा हो गए हैं। हमारे ये तथाकथित नेता देशवासियों को चैन से जीने नहीं दे रहे हैं। जहां समस्या नहीं है, वहां भी ये स्वार्थी नेता कोई न कोई समस्या पैदा कर देते हैं। आज हमारी बहुत परेशानियों का कारण हमारे यह गलत नेता ही हैं। इन्हीं तथाकथित नेताओं के कारण लोग परेशान हैं। लोगों की समस्या दूर करने की बजाय सोशल मीडिया पर तो ये तथाकथित नेता अब एक दूसरे को भिड़ाने का माहौल पैदा करते हैं।
खैर छोड़िए अब हरियाणा व महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव की बात करते हैं। विधानसभा चुनाव को लेकर घमासान जारी है। सभी राजनीतिक पार्टियां अपने अपने उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतार चुके हैं। अब सभी राजनीतिक दलों के नेता एक दूसरे पर कीचड़ भी उछाल रहे हैं । वैसे इस विधाानसभा चुनाव में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से लेकर सोशल मीडिया व प्रिंट मीडिया में नीबू मिर्चा, राफेल, धारा ३७०, जम्मू-कश्मीर, इसके अलावा पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की चर्चा जोर शोर से चल रही है। देश भर में भाजपा नेताओं ने देश हित को मुद्दा बनाकर विधानसभा चुनावों में अपने अपने विचार प्रकट कर रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि जैसे भाजपा के नेता और कार्यकर्ता ही राष्ट्रभक्त हैं बाकी सब देश के गद्दार। वैसे लोकसभा चुनाव में भाजपा नेता और कार्यकर्ता अपने आपको चौकीदार बनने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया था , और दूसरी तरफ देश भर की सिक्योरिटी एजेंसियां टेंशन में आ गई थीं, लेकिन चौकीदार अपने आपको गौरवाान्वित मेहसूस कर रहे थे। और २०१४ के लोकसभा चुनाव में चाय वाले अपने आपको गौरवान्वित महसूस कर रहे थे। आपको याद होगा जब उत्तरप्रदेश में विधानसभा चुनाव था तो कब्रिस्तान से लेकर श्मशान व गधों पर चर्चा हो रही थी । उस समय उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री और देश के प्रधानमंत्री गधों की चर्चा कर रहे थे तो गधे अपने आपको गौरवान्वित महसूस कर रहे थे , और करना भी चाहिए। क्योंकि गधे भी होते हैं बड़े काम के। ऐसे ही एक बार एक सभा में एक मंत्री जी ने घोषणा की, और बोलते-बोलते कुछ जोश में आ गए और बोले कि ‘देश की गरीबी मिटाने का एक उपाय है।
हमारे देश में गधे बहुत हैं। आदमियों से तीन गुना ज्यादा’, और अगर आदमियों की भी गिनती उनमें कर लो तो फिर गधे ही गधे हैं। मंत्री जी ने कहा कि अगर गधे की सींग को हम निर्यात कर बाहर के देशों को भेज सकें या गधे के सींग से कुछ सुंदर सुंदर चीजें बनाकर बाहर भेज सकें तो इतनी विदेशी मुद्रा मिलेगी कि धन ही धन हो जायेगा। बात लोगों को जंच ही रही थी कि तभी एक युवक खड़ा हो गया। उसने कहा कि मंत्री जी गधे की सींग होते ही नहीं। युवक के विरोध को गंभीरता से लिया गया। और इस बात की जांच के लिए एक जांच आयोग नियुक्त किया गया कि गधे के सींग होते हैं या नहीं। राजनीति तो ऐसी ही चलती है, उसकी चाल तो बड़ी अद्भुत है। किसी भी गधे से पूछ लेते या सिर्फ देख लेते तो भी काम चल जाता लेकिन जांच आयोग बिठाया गया। कोई रिटायर्ड चीफ जस्टिस सुप्रीम कोर्ट के बनाये गये होंगे। शाह आयोग नहीं बादशाह आयोग बिठाया गया होगा क्योंकि मामला हाई-प्रोफाइल के साथ साथ बड़ा गंभीर है। आयोग ने पांच सालों के बाद अपना रिपोर्ट प्रस्तुत किया। रिपोर्ट में कहा कि सवाल यह नहीं कि गधे की सींग होते हैं या नहीं। सवाल यह है कि आखिर जनता ने उन्हें चुना है तो वे जो कहते हैं वह जनता की आवाज है, अत: उसका विरोध करने वाला आसामाजिक तत्व है, और उसे सजा मिलनी चाहिए’, तो कौन विरोध करे’, मंत्री जी तो जनता की आवाज हैं ! और कभी-कभी तो मंत्री जी जब जोर से अपने अहंकार में आ जाते हैं, तो अपनी आवाज को आत्मा की आवाज और परमात्मा की आवाज तक कहने लगते हैं। जनता-वनता को तो पीछे छोड़ देते हैं, अद्भुत लोकतंत्र है यह। यहां एक आदमी अपनी इच्छा करोड़ों लोगों पर थोप सकता है।
खैर अब हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं। देश में तेजी से बदलते राजनीतिक घटनाक्रम के बीच अब सभी राजनीतिक दल के उम्मीदवार खजाने की खोज करने में जुट गए हैं, उनका खजाना है वोटर। अब खजाना किसे मिलेगा ? सत्ता किसे मिलेगी ? अब तो यह वोटर ही जाने। परन्तु हमारी इच्छा तो यही है कि यह खजाना किसी रक्षक को मिले, भक्षक को नहीं, पर मेरा सुनेगा कौन ? खैर ये तो सबकी इच्छा पर निर्भर करता है कि अपना खजाना रक्षक को दें या भक्षक को। अब तो इस खजाने को ठगने के लिए प्राय: कथित ठेकेदार व ठग आदमी उम्मीदवारों की इसी कमजोरी को समझते हैं। और घर में दबे खजाने को प्राप्त करने के नुस्खे बताते रहते हैं और एवज में कुछ हजार रूपए लेते हैं। सारा घर बुरी तरह खोदने के बाद पांच किलो सोना तो क्या एक छंटाक पीतल भी नहीं निकलती, तो उम्मीदवार रोता-चिल्लाता है, हाय मुझे तो ठग लिया। जनता जनार्दन भी पसोपेश है कि किसको करें मतदान, यहां तो हर साख पर उल्लू बैठा है ! जनता जनार्दन को मालूम है कि जीतने वाले उम्मीदवार अपना अपना उल्लू सीधा करेंगे और अपना ही घर भरेंगे। यानी जनता जनार्दन को फिर से पांच साल के दुष्चक्र में फंसाया जायेगा।