“होनहार बिरवान के होत चिकने पात ” कहावत लिखने वाले ने क्या सोचकर लिखा यह तो नहीं पता है लेकिन यह कहावत आज कुछ लोगों के संदर्भ में सटीक बैठती है। सोच समझकर वक्त के साथ कदम बढ़ाने वालों ने हमेशा रेत पर अमिट इबारत लिखी है ।ऐसे ही हैं रेत पर अमिट इबारत लिखने वाले एडवोकेट अमरनाथ मिश्र जी। बचपन में ही कुछ कर गुजरने की तमन्ना रखने वाले श्री मिश्र जी ने समय-समय पर लोगों को एहसास कराते रहे कि आने वाले दिनों में उन्हें एक ऊंची उड़ान हासिल करना है। सुल्तानपुर जनपद के छोटे से गाँव में बचपन व्यतीत करते हुए उन्होंने देश की सेवा करने का दृढ़ संकल्प लिया । विद्यार्थी जीवन में उनकी प्रतिभा को देखकर लोगों ने यह अनुमान लगा लिया था कि आने वाले दिनों में सफलता इनके कदम चूमेगी। जिस प्रकार स्कूली शिक्षा में एक मेधावी छात्र के रूप में अपनी पहचान स्थापित कर चुके थे, उसी तरह इन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में भी शीघ्र ही एक मेधावी विद्यार्थी के रूप में अपनी प्रतिष्ठा स्थापित कर ली। यहां पर इन्होंने अपनी प्रतिभा को परिमार्जित किया। दृढ़ संकल्प और नेक इरादे से अपना कदम बढ़ाते हुए इन्होंने अपने सपनों को पूरा करने के लिए जी- जान से विभिन्न स्पर्धाओं के लिए परिश्रम करने लगे। इनकी लगन और मेहनत को देखकर इनके सहपाठियों के यकीन हो गया था कि शीघ्र ही देश की सेवा के लिए इनका चयन हो जायेगा।
वह भी शुभ दिन आया जब इनके सपनों को पंख लग गए और ये भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयनित हो गए। अब ऊंची उड़ान के लिए आसमान खुला हुआ था । इन्होंने अपने लगन और मेहनत से अपने विभाग में उत्कृष्ट कार्य करते ही शीघ्र ही विदेश व्यापार विभाग में संयुक्त निदेशक के पद तक पहुंच गए।विदेश व्यापार विभाग में संयुक्त निदेशक जैसे बड़े पद पर प्रतिष्ठित होकर देश की सेवा करते हुए इनके मन में विचार आया कि यह एकाकी देश सेवा का साधन है। हमारे समाज में अनेक ऐसे जरूरतमंद लोग हैं जिन्हें सच में मार्गदर्शन और सहायता की जरूरत है। कुछ समय बाद प्रतिष्ठा और पद से विरक्ति विरक्ति होने लगी। इनके मन में पूर्ण रूप से लोगों की सेवा की भावना जागृत हुई। फिर एक दिन अचानक भारतीय सेवा से कार्यमुक्ति लेकर इन्होंने सब को चौकाते हुए अपने जीवन की दूसरी पारी खेलने का निश्चय किया । अनेक आत्मीय जनों ने अपनापन दिखाते हुए इस निर्णय पर पुनर्विचार करने की सलाह दी। लेकिन दृढ़ निश्चयी व्यक्तित्व के धनी मिश्र जी ने अपने अडिग फैसले पर पुनर्विचार करने की जरूरत नहीं समझी।
वर्तमान में अमरनाथ मिश्र जी एक सफल अधिवक्ता के रूप में अपनी सेवाएं देते हुए समाज सेवा को जीवन का उद्देश्य मान लिए हैं। जगह-जगह समाज सेवा का कार्य कर रहे हैं। मुंबई, दिल्ली ,पुणे ,चेन्नई ,अहमदाबाद, सुल्तानपुर जैसे अनेक स्थानों पर इनके कानूनी सलाहकार केंद्र खुले हुए हैं। इनके विशाल व्यक्तित्व का सिंहावलोकन करते हुए विभिन्न मुद्दों पर विस्तृत बातचीत हुई। प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश—–
* मिश्र जी अपने बारे में कुछ बताइए?
– मैं एक सामान्य परिवार से ताल्लुक रखने वाला, कठिन परिश्रम करने वाला, लोगों के दुख- दर्द बांटने की इच्छा रखने वाला ,बड़े सपने देखने वाला ,साधारण–सा इंसान हूँ।
* आप विदेश व्यापार विभाग में संयुक्त निदेशक के पद पर प्रतिष्ठित थे , फिर अचानक इससे मोहभंग क्यों हुआ?
-(गंभीर होकर) पद और प्रतिष्ठा ही जीवन में सब कुछ नहीं है। इसके आगे भी बहुत कुछ है।
* एक सफल अधिवक्ता के रूप में आपको कैसा लगता है?
-( मुस्कुराते हुए ) सफलता तो सबको अच्छी लगती है।
* समाज सेवा का विचार मन में कब से आने लगा?
– सेवा करना तो हमारे संस्कारों में हैं। हम बचपन से माता-पिता की सेवा करते आ रहे हैं। अपने बड़ों की सेवा करते आ रहे हैं । दृष्टिकोण बड़ा रखें तो सब तो अपने ही हैं ।अपनों के साथ रहना ही सेवा है। समाजसेवा जीवन का अंग होना चाहिए।
* शिक्षा के गिरते स्तर के संदर्भ में क्या कहेंगे?
– सच कहूं तो हमारी शिक्षा पद्धति ही गलत है। यह शिक्षा पद्धति हमें साक्षर तो करती है लेकिन एक सुयोग्य और जिम्मेदार नागरिक नहीं बना पा रही है।
* बेतहाशा बढ़ती बेरोजगारी के बारे में क्या कहना चाहेंगे?
– हमारी शिक्षा प्रणाली में दोष है। विद्यार्थियों को मोटिवेट नहीं कर पाती है । उनके अंदर दृढ़ इच्छाशक्ति का निर्माण नहीं कर पाती। इसलिए डिग्री और डिप्लोमा लेने के बाद हमारे विद्यार्थी थका हुआ महसूस करते हैं। शिक्षा स्वावलंबी बनाती है न कि परावलंबी। हमारे विद्यार्थियों में सृजनशीलता का गुण विकसित नहीं हो पा रहा है।
* अपने गृह जनपद और उसके आसपास आप सक्रिय समाज सेवा लगे हुए हैं।
– हां यह सच है । हम अपने गृह जनपद सुल्तानपुर और उसके आसपास लोगों के साथ जुड़ करके उनकी जरूरतों को ध्यान में रखते हुए विभिन्न प्रकार के प्रकल्पों का आयोजन कर रहे हैं ।समय – समय पर नेत्र जांच केंद्र, चश्मा वितरण , मेडिकल कैंप, समस्या निवारण केंद्र, रोजगार मेला , कानूनी सहायता हो या लोगों की अन्य मूलभूत समस्याएं जिनका समाधान नहीं हो पा रहा है, हम लोगों से मिल कर के उनकी समस्या का समाधान करने का प्रयास करते हैं। ऐसे बच्चे जो किन्हीं कारणों से शिक्षा प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं , हम उनकी शिक्षा में आने वाली बाधाओं को दूर करने का प्रयास करते हुए उन्हें उनकी मंजिल तक ले जाने का प्रयास करते हैं। यह तो हमारी जन्मभूमि का ऋण है ।सभी को अपनी जन्मभूमि से जुड़ करें ऐसे कार्य करना चाहिए।
* अब तक कितने बेरोजगारों को रोजगार मेला द्वारा रोजगार प्रदान चुके हैं?
– वर्तमान में इनकी संख्या हजारों से भी ज्यादा है। वहां पर एक का स्थाई केंद्र बना हुआ है । लोग अपना बायोडाटा जमा करते हैं और उनके योग्य रोजगार की तलाश कर हम उन्हें की सूचना देते हैं।
* वृद्ध आश्रम खोलने का विचार मन में कैसे आया?
– हम इसे वृद्धाश्रम नहीं बल्कि संन्यास आश्रम मानते हैं । हमारे वेदों में वर्णित है की इंसान को अपने चौथेपन में वानप्रस्थ गमन करना चाहिए। हमारा मानना हैं कि समय के अनुसार घर में जिनकी सेवा नहीं हो पा रही है या जो अपने को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं ,वे हमारे संन्यास आश्रम (वृद्धाश्रम) में आकर हमें अपनी सेवा करने का मौका दें । ऐसे लोग जो किन्हीं कारणों सेअपने मां-बाप की सेवा नहीं कर पा रहे हैं । वे उन्हें निराश्रित घरों में अकेले न छोड़ें।
* एक विद्यालय खोलने की भी तैयारी चल रही है, उसके बारे में कुछ जानकारी दें।
-केजी से लेकर पीजी तक एक ऐसा विद्यालय खोलना चाहता हूं जहां पर पाठ्यक्रमिक शिक्षा के साथ-साथ व्यवहारिक शिक्षा भी प्रदान किया जाए ।जिससे डिग्री- डिप्लोमा लेने के साथ-साथ वे एक सदाचारी और जिम्मेदार नागरिक बने।
* समाज सेवा करते समय क्षेत्र के लोगों का सहयोग कैसे मिलता है?
– कुछ लोगों को समाज सेवा का ऐसा कार्य पसंद नहीं आता है जिन्होंने समाज का गलत तरीके से दोहन किया है। कुछ लोगों को यह पसंद नहीं होता है कि कोई आए और समाज में अच्छे कार्य करें ,इसमें तथाकथित राजनेताओं की संख्या ज्यादा रहती है। उन्हें भय रहता है कि जनता जागरूक हो जाएगी तो उनकी राजनीति खत्म हो जाएगी। हां , जिन्हें सच में जरूरत है वे बहुत खुश हैं। वे हमारे साथ हैं हैम उनके लिए सदैव उपलब्ध हैं।
*सेवानिवृत्ति के जिस पड़ाव पर लोग आराम करने लगते है , उस पड़ाव पर आप लोगों की सहायता के लिए भाग दौड़ करते नजर आ रहे है।
-शारिरिक नहीं, मानसिक थकान पीड़ादायक होती है। व्यक्ति को सदैव कर्मशील बना रहना चाहिए। हमने बचपन में पढ़ा है “कर्म ही पूजा है ।” बस बचपन से ही वही पूजा करता आ रहा हूं ।
* आप एक प्रशासनिक अधिकारी रहे हैं। आज बदलाव का दौर चल रहा है। इस संदर्भ में क्या कहना चाहेंगे?
-बदलाव प्रकृति का नियम है। बदलाव को स्वीकार करना चाहिये। हां इतना याद रखना चाहिये कि बदलाव तर्कसंगत व विकासोन्मुखी हो।
*हमारा इशारा देश मे हो रहे राजनैतिक बदलाव की तरफ है।
-( हंसते हुए) मैं कोई राजनेता अथवा किसी राजनैतिक पार्टी का कार्यकर्ता नहीं हूं ।लेकिन इतना जरूर कहूंगा कि लोकतंत्र में जनता का निर्णय सर्वोपरी होता है। जनता का निर्णय सभी को स्वीकार करना चाहिए।सरकार को भी जनता की आकांक्षाओं का ध्यान रखना चाहिये। जिस उम्मीद से देश की जनता ने विश्वास व्यक्त किया है वह टूटना नहीं चाहिये।
* आपको कैसा अनुभव हो रहा है?
– मेरा निजी अनुभव है कि सरकारें कसौटी पर खरी नहीं उतर पा रही हैं।
*किसानों की समस्याओं के बारे में क्या कहना चाहेंगे?
– हमारा देश एक कृषि प्रधान देश है।किसानों की हालत खराब है। आये दिन किसानों की आत्महत्या की खबर आती रहती है।यह एक दुखद बात है। जब तक सरकार किसानों की समस्या नहीं खत्म करेगी, देश एक विकसित राष्ट्र नहीं बन पाएगा । बड़े दुःख की बात यह है कि हर सरकार किसानों के नाम पर चुनाव लड़कर जीतती हैं पर उन्हें ही भूल जाती हैं।
*एक आखिरी सवाल। मौका मिला तो राजनीति में आना चाहेंगे। अगर हां तो किस पार्टी के साथ?
-(हँसते हुए) अभी तक तो इसके बारे में कभी सोचा ही नहीं। मनुष्य एक राजनीतिक प्राणी है।
ऊपर से मैं उस क्षेत्र से संबंधित हूं , जहां के लोगों के नश-नश में राजनीति रहती है।मौका मिलेगा, विचार मिलेगा तो विचार करूंगा।
जिस पार्टी से हमारा विचार मिलेगा, उसके बारे में सोचा जाएगा।
* एक आखिरी सवाल। युवाओं को क्या संदेश देना चाहेंगे?
-युवाओं से सिर्फ इतना कहना चाहूंगा कि वे कठिन परिश्रम करना सीखें। कठिन परिश्रम का कोई विकल्प नहीं है। युवा अपने अंदर ईमानदारी, देशभक्ति, कर्तव्यनिष्ठा और सामाजिक उत्तरदायित्व के गुण विकसित कर राष्ट्र के विकास में सहभागी बनें।
प्रस्तुति : मिथिलेश वत्स
समालोचक एवं राजनीतिक विश्लेषक