अखिल भारतीय उपभोक्ता उत्थान संगठन की मांग पर गुजरात सरकार ने नकली और मिलावटी मावा को लेकर स्वास्थ्य सचिव को सौंपी जांच.
वलसाड. अखिल भारतीय उपभोक्ता उत्थान संगठन की मांग पर गुजरात सरकार ने राज्य भर में नकली और मिलावटी मावे की राज्यव्यापी जांच राज्य के अतिरिक्त मुख्य सचिव ने स्वास्थ्य विभाग को सौंप दी है. इससे राज्य स्तर पर चल रहे नकली और मिलावटी मावा रैकेट के खिलाफ कार्रवाई की स्थिति पैदा हो गई है. अब ये सारी संभावनाएं निष्पक्ष जांच पर निर्भर करेंगी.
अखिल भारतीय उपभोक्ता उत्थान संगठन के गुजरात प्रदेश के उपाध्यक्ष विजयकुमार गोयल ने सरकारी विभागों के समन्वय से दक्षिण गुजरात के वलसाड नवसारी, डांग, सूरत, तापी, भरूच और नर्मदा जिलों के कलेक्टरों को 6/8/2022 को एक पत्र लिखा था और नकली मावा के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी. वहीं नकली और मिलावटी मावा की राज्य स्तर पर कार्रवाई करने के लिए राज्य के मुख्यमंत्री भूपेंद्रभाई पटेल और उपभोक्ता संरक्षण व आपूर्ति मंत्री नरेशभाई पटेल को भी पत्र लिखा गया था. जबकि गुजरात के मुख्यमंत्री ने मांग को स्वीकार करते हुए जांच के आदेश दिए हैं. यदि सरकारी व्यवस्था सख्त और निष्पक्ष कार्रवाई करती है, तो लोगों को अच्छी और गुणवत्ता वाली मिठाइयाँ मिल सकती हैं और मिलावटी मिठाइयों से होने वाली बीमारियों से छुटकारा मिल सकता है.
संगठन के प्रदेश उपाध्यक्ष विजयकुमार गोयल ने सरकार को बताया कि मावा की कुल खपत का 50 से 60 फीसदी नकली और मिलावटी होता है. राज्य सरकार का खाद्य एवं औषधि विभाग कार्रवाई के प्रति उदासीन रवैया दिखा रहा है जो ध्यान देने योग्य है.
प्रेजेंटेशन में विजय गोयल ने स्पष्ट रूप से कहा कि एक किलो मावा बनाने के लिए आमतौर पर साढ़े पांच लीटर दूध की आवश्यकता होती है और ईंधन और श्रम आदि के साथ-साथ दूध की कीमत 330 रुपये है. जबकि बाजार में मिलावटी मावा 200 रुपये से शुरू होकर अलग-अलग दामों में बिकता है. जबकि उच्च गुणवत्ता वाले मावा का बाजार भाव 400 रुपये से शुरू होता है जो काफी अंतर बताया जाता है. अब लोगों का स्वास्थ्य सरकारी तंत्र पर निर्भर करता है.