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पिछले वर्ष दीपावली के अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार स्वर्गीय श्री वीर विक्रम बहादुर मिश्र का उल्लू पर लिखा लेख

स्व. श्री विक्रम बहादुर मिश्र जी , इंडिया टुडे पत्रिका के उत्तर प्रदेश के संपादक आशीष मिश्र के पिताजी है।

स्वर्गीय बिक्रम बहादुर मिश्र जी का संक्षिप्त परिचय,
वीर विक्रम बहादुर मिश्र के बारे में- वे सन1946 में जन्म गोंडा ,उत्तरप्रदेश में हुआ। स्वतंत्र भारत के ब्यूरो चीफ और तब थे जब लखनऊ में गिनती के अख़बार थे। लेकिन मुख्यमंत्री को कवर करने और रामकिंकर जी कीरामकथा को कवर करने के विकल्प में उनकी दिलचस्पी रामकिंकर जी और रामकथा में ज़्यादा रहती थी ।धार्मिक और अध्यात्मिक खबरों को वे रमता राम के नाम से रिपोर्ट करते थे।स्वतंत्र भारत से अवकाश लेने के बाद उन्होंने एक साप्ताहिक ‘जागिनी अभियान’ भी निकाला।

पिछले 15 दिन पहले उनका देहावसान हो गया , स्टार मीडिया परिवार उनको श्रद्धांजलि सुमन अर्पित करता है।

इंडिया टुडे पत्रिका के उत्तर प्रदेश के संपादक आशीष मिश्र जी व उनके पिता स्वर्गीय श्री बिक्रम बहादुर मिश्र जी

पिछले वर्ष दीपावली के अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार स्वर्गीय श्री वीर विक्रम बहादुर मिश्र का उल्लू पर लिखा लेख –

आप सबको दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं

दीपावली पर आज लगभग हर घर में गणेश लक्ष्मी का पूजन होता है. इन दोनों देवी देवताओं के अतिरिक्त अन्य जिन महत्वपूर्ण श्रीमंतों का आज के दिन महत्व है वे हैं भगवान विष्णु और उल्लू. उल्लू इसी जगत का प्राणी है दूसरे तीनों अन्य दिव्यजगत के प्राणी हैं. चारों में उल्लू ही ऐसा है जो हमें आज भी सशरीर सुलभ है. दीवाली के दिन उल्लुओं की मांग बढ़ जाती है .यह पहला दिन है जब उल्लुओं पर भी लोग ऊंचा दांव खेलते हैं. आइये जरा विचार करें कि ऐसा क्या है आज के दिन कि बुलाना लोग लक्ष्मी को चाहते हैं परंतु पूजा लक्ष्मी के साथ लक्ष्मीपति विष्णु की बजाय गणेश की करते हैं और रोज जिस उल्लू को उल्लू समझते हैं आज उसके लिये भी पलकपांवड़े बिछाते हैं.
उल्लू जो उल्लू होता है वह खुद को उल्लू नहीं समझता. वह तो दूसरा ही होता है जो उसे उल्लू समझता है. बल्कि उल्लू सदैव दूसरे को उल्लू समझता है.

जिसे अपने उल्लुआपे की समझ आ जाती है वह उल्लू होना बंद कर देता है. केवल उल्लू ही उल्लू नहीं होता कई बार वे भी उल्लू होते हैं जो उल्लू नहीं होते. लक्ष्मी ने अपनी सवारी उल्लू ही चुना क्योंकि उसे जिधर भी हांक दो उधर ही चलता रहता है खुद कोई विचार नहीं करता. उसी के चक्कर में लक्ष्मी कई बार पापियों के यहां भी पहुंच जाती हैं. गोस्वामी तुलसीदास जी ने उल्लू का नाम लिये बिना ही लिखा है.–
“सुत दारा अरु लक्ष्मी पापिउ के घर होय।
सतसंगति अरु हरिकथा तुलसी दुर्लभ दोय ।।”


लक्ष्मी की विशेषता यह है कि पहुंच वे भले जांय पापी के घर पर टिकती वहां हैं जहां नारायण होते हैं. नारायण का दोष यह है कि वे क्षीरसागर में शेषनाग को शैया बनाकर सोते हैं तब लक्ष्मी उनके पैर दबाती हैं. सुंदर विचार ही क्षीरसागर है. सुंदर विचारों के इस क्षीरसागर में दुख का शेषनाग भी रहता है परंतु यह सुंदर विचारों से लबालब सज्जनों का कुछ इसलिये बिगाड़ नहीं पाता क्योंकि उनके अंतःकरण में विराजमान उसे शैया बनाकर पांवों तले दबाये रहते हैं. इसीलिये लक्ष्मी को बुलाने से पहले उन्हे टिकने का वातावरण देने के लिये पहले श्री हरि को बुलाइये. श्रीहरि होंगे तो लक्ष्मी रुक कर उनका चरण दबाते हुए जीवन में आनंद भरेंगी अन्यथा वे घर से भागने का रास्ता खोजेंगी फिर लक्ष्मी दौड़ाती बहुत हैं.


लक्ष्मी के साथ गणेश के पूजन का औचित्य भी यही है. गणेश विवेक के देवता हैं लक्ष्मी अकेले आती हैं तो कई बार लोगों को बिगाड़ देती हैं लोग उनके ऐश्वर्य को संभाल नहीं पाते और अनाप शनाप खर्च करने लगते हैं. लक्ष्मी के साथ गणेश के पूजन का आशय है कि लक्ष्मी का आगमन हो और जीवन में विवेक बना रहे.


लक्ष्मी को प्राप्त करने के लिये पहले अपना उल्लुआपा सुधारिये. कभी उल्लू को उल्लू न कहिये क्यों कि उल्लू खुद को उल्लू कहे जाने पर विदकता है. आखिर अपनी सवारी को तो वही लेकर आयेगा. लक्ष्मी उल्लू को अपना वाहन भले बनाती हैं पर वे उसका प्रयोग केवल आनेजाने के लिये करती हैं उसके साथ स्थायी रूप से नहीं रहतीं. कोई अपना वाहन ड्राइंग रूम में थोड़े रखता है. कई बार लेगों की असावधानी से लक्ष्मी के साथ साथ उल्लू भी घर में घुस आता है और लोगों को तमाम उल्लुआपे को विवश करता है. लक्ष्मी के साथ गणेशपूजनकी यही अनिवार्यता है. आप सभी महानुभाओं के जीवन में लक्ष्मीनारायण की उपस्थिति हो उल्लू अपनी सवारी आपके दरवाजे पर उतारे जरूर पर खुदघर के भीतर आने का साहस न करे.

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