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पंचगनी-महाबलेश्वर की खूबसूरती बनी पाठ्यक्रम का हिस्सा

मुंबई । महाराष्ट्र के पर्वतीय स्थलों में पंचगनी- महाबलेश्वर की नैसर्गिक छटा मन को सुकून देने वाली है। वन प्रदेश की श्यामल हरीतिमा अपने-आप में रमणीय है।यहां आकर प्रकृति- प्रेमी बच्चों की तरह चहकने लगते हैं। पसरी हुई नीली घाटियां मन को बरबस अपनी ओर खींचती हैं।सुदूर रजत-रेख-सा गिरता हुआ झरना अपनी मस्ती में गुनगुनाता रहता है।यहां की अमराइयों में गुठलियां बांझ नहीं बल्कि धरती का ‘हिरण्यगर्भा रूप’ अपने सर्वोत्तम रूप में मौजूद है।कलरव करते पक्षियों के संगीत पर कुलांचे भरते मृग मनोहारी लगते हैं ।रुपहले पर्दे वाली आकाश की नीलिमा और छिटकी हुई हरियाली हर कोई अपनी झोली में समेट लेना चाहता है। यात्रावृत्तकार डॉ. जीतेन्द्र पाण्डेय ने मुंबई से अपनी इसी रचनात्मक यात्रा को बड़े ही मनमोहक अंदाज़ में ‘स्पंदन’ शीर्षक में संजोया है।आईसीएसई और सीबीएससी बोर्ड के लिए निर्मित पाठ्यपुस्तक ‘मैथिली’ की कक्षा आठवीं में ‘स्पंदन’ यात्रावृत्त का चयन किया गया है।

इसमें पंचगंनी- महाबलेश्वर की खूबसूरती के साथ-साथ वहाँ के लोकजीवन को भी बड़ी गहराई से जाँचा – परखा गया है। लेखक की बेचैनी पर्यावरण को लेकर स्पष्ट है। वह इसके क्षरण की गंभीरता को बड़ी संजीदगी से रेखांकित करता है। यह यात्रावृत्त किसी स्थान विशेष का गुणगान नहीं है। उसकी तटस्थ दृष्टि संस्कृति और विकृति दोनों पर समान रूप से पड़ती है। मोनू से लेखक का बिछोह मार्मिक है। यह पाठ छात्रों में ऐसी दृष्टि विकसित करेगा जिससे वे खुद को प्रकृति से जोड़ पाएंगे। पाठ पढ़ने के बाद विद्यार्थियों में पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी और संवेदना का भाव जागेगा। प्रस्तुत पाठ में पंचगनी- महाबलेश्वर की भौगोलिक, सांस्कृतिक, आर्थिक एवं लोकजीवन का बड़ी गहराई से चित्रण किया गया है। इसे पढ़कर छात्रों में यात्राओं के प्रति रुचि जागृत होगी। समाज में सकारात्मक बदलाव के लिए पाठ्यपुस्तकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जो काम सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं से संभव नहीं होता, पाठ्यपुस्तकों से हो जाता है। ऐसे में ‘स्पंदन’ जैसी सामग्री का चयन नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मानकों को सार्थकता प्रदान करता है। इस तरह के पाठों का पाठ्यपुस्तक में शामिल किया जाना राष्ट्र के लिए शुभ है।

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