कृष्ण मिश्र ” गौतम”
स्टार मीडिया न्यूज, वापी। श्री खाटूश्याम प्रचार मंडल द्वारा 17 वा वार्षिक महोत्सव की शुरुवात आज से वापी में आगाज हो चुका है। 25 तारीख की देर रात तक चलने वाले इस धार्मिक आयोजन में आयोजन समिति ने कोविड गाइडलाइंस के तहत सावधानी बरता गया है। श्री सूरजगढ़ के निशान और सिगड़ी यात्रा के साथ कार्यक्रम की भव्य शुरुवात हुई जिसमे सैंकड़ों श्याम प्रेमियों ने हिस्सा लिया। वापी में शनिवार दोपहर 12:15 बजे प्राचीन सिद्धेश्वर महादेव मंदिर से निशान एवीएम सिगड़ी पदयात्रा रामदेव मंदिर तक महंत हजारीमल जी इंदौरिया ( सूरजगढ़ दरबार ) के सान्निध्य में निकाला गया जिसमें वापी , सिलवासा ,दमन , भिलाड, समेत कई जिलों के श्यामप्रेमी पदयात्री बड़ी संख्या में शामिल हुए।
पदयात्रा में विशाल हुजूम के साथ आगे-आगे हनुमान की पताका के साथ महिलाएं सिर पर सिगड़ी रखकर उसमे अलाव जलाकर बाबा के मंगल गीत गाते आगे चलती नजर आई। इस दौरान पदयात्रा में श्रद्धालु गाजे बाजे की धुनों पर नाचते-गाते हुए चल रहे थे। सूरजगढ निशान और सिगड़ी की अंग्रेजों के जमाने से विशेष मान्यता है। शाम को भव्य तरीके से सालासर बालाजी प्रचार मंडल वापी द्वारा संगीतमई श्री रामचरित मानस सुंदरकांड का पाठ पठन किया गया , जिसमें सैकड़ों भक्तों ने एक साथ सामूहिक सुंदरकांड में हिस्सा लिया।
आयोजकों द्वारा निशान और सिगड़ी की महत्ता के बारे में बताया गया की सूरजगढ़ निशान का विशेष महत्व माना जाता है। इस निशान के भक्तों ने अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिलाते हुए उनकी चूले हिला दी थी। अंग्रेजी शासन काल के समय श्याम मंदिर में निशान चढाने को लेकर भक्तों की होड़ मच गई थी। जिसके बाद अंग्रेजी हुकूमत ने बाबा श्याम के मंदिर के पट बंद कर बड़ा सा ताला लगा दिया और कहा कि जो भी भक्त बिना किसी हथियार के इस ताले के तोड़ेगा। वहीं मंदिर में बाबा के निशान चढ़ाएगा। उसके बाद सभी भक्तों ने अपने अपने प्रयास किए लेकिन ताला नहीं खुला।
उसके बाद जब सूरजगढ़ से निशान लेकर गए मंगलाराम अहीर का नंबर आया तो उसने अपने गुरु की आज्ञा लेकर मोर पंख से ताले को तोड़ दिया और बाबा का मंदिर खोल कर निशान चढ़ाया। इस निशान के साथ महिलाएं भी अपने सिर पर सिगड़ी रखकर चलती हैं। इसके पीछे मान्यता है कि जिस महिला ने बाबा के सामने अपनी मुराद रखी और वह पूरी हो गई । सैंकड़ों उदाहरण वापी और आस पास के विस्तार में ही है। इसी मान्यता के साथ तो वह पदयात्रा में पूरे रास्ते सिर पर सिगड़ी रखकर पहुंचती है और बाबा को अर्पित करती है।