युवक किसान ने जिले का सर्वश्रेष्ठ किसान पुरस्कार जीता और राज्यपाल ने किया सम्मानित
संकलन जिग्नेश सोलंकी,
श्यामजी मिश्रा, वलसाड। “सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया” इस सुप्रसिद्ध संस्कृत मंत्र का सार यही है कि सब सुखी हों, सब स्वस्थ हों, सब रोगमुक्त हों। वर्तमान समय में जब रासायनिक खादों के कारण बीमारी का प्रकोप बढ़ रहा है, तब स्वस्थ जीवन के लिए प्राकृतिक खेती ही एकमात्र सर्वोत्तम विकल्प है। इसकी ओर लौटने के लिए और किसानों की आय को दोगुना करने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री नरेन्द्रभाई मोदी, गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत और मुख्यमंत्री भूपेंद्रभाई पटेल प्राकृतिक खेती का आह्वान कर रहे हैं, और प्रकृति के संरक्षण के साथ प्राकृतिक खेती के फायदे को समझा रहे हैं। जिसकी दुनिया भर में प्रशंसा हो रही है। तो आज हम एक ऐसे किसान की सफल प्राकृतिक खेती के बारे में बात करने जा रहे हैं, जिसने वलसाड के गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज से बी. ई. मैकेनिकल की डिग्री हासिल करने के बाद नासिक की एक ऑटोमोबाइल कंपनी में इंजीनियर की नौकरी कर ली। परंतु उन्होंने नौकरी को छोड़कर वापस अपने गांव वलसाड जिला के कपराड़ा तालुका के करजुन गांव आ गए और प्राकृतिक खेती शुरू कर दी। जिसमें उन्हें आशा से दुगुनी सफलता प्राप्त हुई। वहीं मात्र 33 वर्ष की आयु में उन्हें 2021 में जिला स्तर का सर्वश्रेष्ठ आत्मा फार्मर अवार्ड मिला, जबकि वर्ष 2022 में गांधी जयंती के अवसर पर उन्हें राज्यपाल आचार्य देवव्रत के हाथों सम्मान प्राप्त हुआ।
किसान मित्र के रूप में मिलता है 1000 व गाय की रखरखाव के लिए 900 रूपया,
जीरो बजट की प्राकृतिक खेती करो और स्वस्थ रहो का संदेश कपराड़ा तालुका के आदिवासी ग्रामीण क्षेत्रों में गुंजायमान करने वाला करजुन गांव का प्रगतिशील युवा किसान रघुनाथ जानुभाई भोया कहते हैं कि पहले, जब उनके माता-पिता रासायनिक खेती करते थे तो दवा का खर्च होता था और स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक था तथा रासायनिक उर्वरकों के कारण मिट्टी प्रदूषित हो गई थी। एक दिन गांव में अंभेटी कृषि विज्ञान केंद्र की किसान शिविर थी, जिसमें क्षेत्र के अरविंदभाई पटेल ने शकरकंद की खेती के बारे में जानकारी दी और बाद में उन्हें गुजरात सरकार के आत्मा परियोजना के अधिकारी अंकुरभाई प्रजापति से मिलवाया। वर्ष 2020 में प्रथम वर्ष में ही एक एकड़ में 12 टन शकरकंद का उत्पादन हुआ। फिर दूसरे साल 10 टन फणसी का उत्पादन हुआ, जिसकी आय 2 लाख रुपये से अधिक थी। पहली बार हमने फढ़सी की खेती का प्रयोग किया, जिसमें आत्मा के अधिकारियों ने हमें विधिवत समझाया और मार्गदर्शन दिया कि इस तरह की प्राकृतिक खेती हमारे खेत में बेहतर ढंग से की जा सकती है। बाद में आत्मा ने मुझे अहमदाबाद में 7 दिन की ट्रेनिंग दी। आत्मा द्वारा घरेलू गाय आधारित प्राकृतिक खेती के लिए मुझे 10,800 रुपये का भुगतान किया जा रहा है जो सीधे मेरे बैंक खाते में जमा होता है । इसके अलावा किसान मित्र के रूप में 1000 रुपये प्रतिमाह भी दिया जाता है।
प्राकृतिक खेती से खाद व कीटनाशक का खर्च जीरो:-
रघुनाथ भाई आगे कहते हैं कि पहले रासायनिक खाद से खेती करते समय खाद और कीटनाशक का खर्चा आता था और दवा के छिड़काव की वजह से सेहत को नुकसान होता था। परंतु अब प्राकृतिक खेती से खाद और कीटनाशक का खर्च जीरो हो गया है। अब सरकार द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार प्राकृतिक खेती के लिए घर की गाय की गोबर व गौमूत्र में से जीवामृत, घनजीवामृत, बीजामृत, ब्रम्हास्त्र, अग्निस्त्र, निमास्त्र और देशी गाय के दूध की खट्टी छास का खेती में उपयोग करने से चूसने वाले जीव और फूग का नाश होता है। यह खाद न केवल फसलों को खुराक देती है बल्कि केंचुओं को भी आकर्षित करती है जिससे 12 घंटे काम करने वाले केंचुए 24 घंटे काम करते हैं और मिट्टी में खाद डालते हैं। 1 ग्राम देशी गाय के गोबर में 108 प्रकार के 300 से 500 करोड़ जीवाणु होते हैं जो फसल की जड़ों से मिलकर फसल को पोषण प्रदान करते हैं।
1 एकड़ भूमि में प्राकृतिक खेती करके 2 लाख 10 हजार रुपये का शुद्ध लाभ,
वर्तमान में एक एकड़ के खेत में टमाटर, मक्का, फढ़सी, बथुआ की सब्जी , तुवर, लहसुन, मिर्च, गोभी, मूली, धनिया, पापड़ी, हल्दी, शकरकंद, पपीता, पालक, बैंगन, सरसों की फसलें उगा रहा हूं। मैं प्राकृतिक खेती को “जीरो बजट की खेती” कहता हूं क्योंकि मैं एक एकड़ भूमि में 15 टन टमाटर के साथ-साथ धनिया भी उगाता हूं, जिससे ज्यादा आय से जुताई और रोपण की लागत 40,000 रुपये निकल जाती है और टमाटर की आवक से 2,10,000 रूपये का शुद्ध लाभ मिल जाता है। देशी गाय आधारित खेती करने से मिट्टी में जीवाणुओं की संख्या को बढ़ाती है और कार्बन-नाइट्रोजन अनुपात को बनाए रखते हुए मिट्टी में आर्गेनिक कार्बन को बढ़ाती है, जिससे मिट्टी को बंजर होने से रोका जा सकता है।
सौर योजना से सिंचाई में 100 % बिजली बचत व सोलर ट्रैप से की कीट प्रकोप की रोकथाम:-
कृषि में सिंचाई की समस्या का समाधान राज्य सरकार की सौर योजना के कनेक्शन से आया। बिजली कंपनी द्वारा मात्र 4000 रुपये की मामूली लागत पर 3 एचपी के सोलार के 12 पैनल लगाए गए हैं और कृषि में साल भर पानी की समस्या नहीं है, अब जीरो बिजली बिल में खेती हो रही है । इसके साथ ही सोलार ट्रैप भी आत्मा अधिकारियों के मार्गदर्शन में लगाए गए हैं, ताकि रात के समय पराबैंगनी प्रकाश चालू होने पर फसल पर अंडे देने के लिए आने वाले पतंगे प्रकाश से आकर्षित होकर नष्ट हो जाते हैं। इसके अलावा खेत में जहरीले सांप या बिच्छू का खतरा होने के कारण उसके निदान के लिए एक नया इनोवेशन के रूप में बखरी व पंजो नामक का एक उपकरण विकसित किया गया है, जिससे एक व्यक्ति सुरक्षित रहकर 10 आदमियों का काम कर सकता है।
प्रतिस्पर्धी युग में नौकरी की तलाश कर रहे युवाओं के लिए प्रेरणा बने:-
रघुनाथभाई कहते हैं कि देशी गायों पर आधारित प्राकृतिक खेती से भरपूर मात्रा में ऑक्सीजन मिलती है, मिट्टी सुधरती है, सेहत सुधरती है, अच्छा अनाज मिलता है, गौ माता की सेवा होती है, खर्च न के बराबर और आय अधिक होती है। सरकार देशी गायों के भरण-पोषण के लिए पैसा देती है। सोलार कनेक्शन से सिंचाई के लिए चौबीसों घंटे पानी मिलता है, जिससे 100 प्रतिशत बिजली की बचत होती है। जैविक खेती से ही मामूली लागत पर मुनाफा कमाया जा सकता है। रघुनाथभाई के इसी लगन और मेहनत की वजह से उन्हें सम्मानित किया जा चुका है, जो इस प्रतिस्पर्धी युग में नौकरी की तलाश कर रहे युवाओं के लिए प्रेरणादायी बन गए हैं।