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न कोई थकावट न कोई आराम , यही है नारी शक्ति की पहचान- डॉ. रुचि चतुर्वेदी

 

स्वामीनारायण गुरुकुल में धूमधाम से मनाया गया अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस

 

कृष्ण मिश्र “गौतम”
वलसाड जिले में शिक्षा की लौ को समाज के जन भागीदारी में अथक प्रयासरत सुप्रसिद्ध शिक्षण संस्थान स्वामीनारायण गुरुकुल में सामाजिक संस्था सैल्यूट तिरंगा के बैनर तले अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का आयोजन किया गया। गुरुकुल स्थित सभागार में सैंकड़ों की उपस्थिति में महिला शक्ति को आह्वान किया गया। सामाजिक संस्था सैल्यूट तिरंगा द्वारा बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की थीम पर समाज में महिलाओं के योगदान के लिए सम्मान के साथ अधिकारों के प्रति जागरूक अभियान , बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना पर परिचर्चा किया गया। इसके साथ ही नुक्कड़ नाटक के द्वारा बेटियों को सुरक्षा और समाज में पनप रहे कुरीतियों पर कुठाराघात करते हुए दरिंदे बलात्कारीयों को सख्त संदेश दिया।

कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर उत्तर प्रदेश से पधारी कवियित्री श्रीमती डॉ. रुचि चतुर्वेदी ने अपने वक्तव्य में कहा कि नारी राष्ट्र की आंखे होती है । महिला जब ठान लेते है तो बखूबी ढंग से इस काम को पूर्ण करती हैं। देश में कई तरह के अतुलनीय योगदान और भागीदारी महिलाओं की है। वो घर भी घर नही लगता जहां बेतिया नही होती। नारी और बिटिया पर कविता के माध्यम से डॉ. रुचि चतुर्वेदी ने महिला के योगदान को बताया।
स्वामीनारायण गुरुकुल के संचालक और सैल्यूट तिरंगा के प्रदेश संयोजक पूज्य कपिल स्वामी ने अपने वक्तव्य में कहा की जहां जहा नारी का सम्मान होता है , वहा देवताओं का वास होता है सफलता कदम चूमती है।
महिलाओं का सम्मान सिर्फ 8 मार्च को नहीं हर दिन करना पड़ेगा तभी सही मायनो में समझा जा सकेगा की महिलाओं को समाज में उचित स्थान दिया जा रहा है। अपने घर से ही अपनी माताओं बहनों को सम्मान और स्नेह दें पुरुष प्रधान समाज की जंजीरों से महिलाओं को न जकड़ें उनका भी अपना अस्तित्व है।
सामाजिक कार्यकर्ता और वनवासी क्षेत्रों में बेटी शशक्ति करण में प्रयासरत रहने वाले पंडित संपूर्णानंद तिवारी ने कहा कि वर्तमान में प्रबंधन, पर्यावरण संरक्षण, समावेशी आर्थिक और सामाजिक विकास जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए विशेष ध्यान दिया गया है। महिलाओं में जन्मजात नेतृत्व गुण समाज के लिए संपत्ति हैं।

श्रीमती निशु संपूर्णानंद तिवारी ने कहा की वर्तमान में महिलाएं दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों में महापौर, मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री, राज्यमंत्री और सांसदों के पद पर आसीन हो देश की प्रगति के लिए कार्यशील हैं। देश के विभिन्न राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायतों में भी महिलाएं विभिन्न पदों पर आसीन हैं।

श्रीमती नीलम सिंह तोमर ने महिला दिवस पर अपने विचारों को रखते हुए कहा की पूर्वोत्तर से आंकलन करे तो महिलाओं ने हर क्षेत्र में डंका बजाया है। शिक्षा ही समाज में विकास और उन्नति का आधार है। महिला शक्ति को भी उन्होंने आगाह करते हुए कहा , बराबरी का हक हर स्त्री का है लेकिन पुरुष और स्त्री दो पहिए हैं, दोनों के एक साथ चलने से किसी भी दिक्कतों का सामना कर सकती है। अगर परिवार में पति पत्नी की बात करें तो कई जगहों पर देखा गया की पत्नी अगर पति से ज्यादा कमाने लगे तो ,वो खुद को बड़ा मानने लगी है। इस तरह की मानसिक विकृतियों से बचना पड़ेगा। चर्चित निर्भया कांड के बारे में सरकारों पर दोष व्यक्त करते हुए कहा की बलात्कार के आरोपी को ऐसी सजा दी जानी चाहिए , की भविष्य में कोई भी पुरुष 10 बार सोचे। संविधान में इन तरह के बदलाव की आस हम स्त्री शक्ति करती है।

नारीशक्ति की प्रखर समर्थक सौम्या मिश्र ने नारी शक्ति के बारे में कहा की ग्रामीण परिवेश में भी महिलाओं को अगर बराबरी का हक मिले तो खेती-किसानी की भी सूरत बदल सकती है।
ग्रामीण महिलाएं विकसित और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की चालक हैं । संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के मुताबिक भारतीय कृषि में महिलाओं का योगदान करीब 32 फीसदी है। उसके बावजूद भी आज भी जब भी किसानों की बात होती है तो सिर्फ और सिर्फ पुरूषों को ही किसानों के रूप में माना जाता है महिलाओं को किसानों के रूप में नहीं माना जाता है। जिस पर बड़े स्तर पर कार्य करने की जरूरत है। जैसे
अगर बात करे पश्चिमी उत्तर प्रदेश की तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 30 ज़िले आते है इन सभी जिलों में गन्ने की फसल मुख्य रूप से होती है इन सभी फसलो को लोगो तक पहुंचाने में महिलाओ का योगदान बहुत अधिक होता है उन सबके बावजूद इन सबके योगदान को न तो जायज़ पैसा मिलता है और न ही पुरुष प्रधान समाज मे उचित सम्मान। गन्ना के खेतों में जो महिलाएं कार्य करती है उन सबको पुरुषों की तुलना में मजदूरी बहुत कम मिलती है। रिपोर्ट के अनुसार भारत में एग्रीकल्चर लेबर फोर्स में महिलाओं की हिस्सेदारी 42 फीसदी से अधिक है लेकिन 2 फीसदी से कम महिलाओं के पास खेती की जमीन का मालिकाना हक है।
वैसे तो महिलाओं को ग्रामीण अर्थव्यवस्था का रीढ़ कहा जाता है। विकासशील देशों में इनकी भूमिका और महत्वपूर्ण है, बावजूद इसके महिलाओं को ज्यादातर मजदूर ही समझा जाता है। किसी घर में जमीन की हिस्सेदारी में होती भी हो तो वो जमीन के बहुत छोटे हिस्से पर। ज्यादातर महिलाओं को न तो खेती के लिए बाकायदा प्रशिक्षण दिया जाता है औ न ही बेहतर फसल होने पर उन्हें शाबासी मिलती है। ग्रामीण महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा घंटे काम करती हैं। जबकि महिलाएं कृषि कार्य करने के साथ-साथ घर और बच्चों की देखभाल भी करती हैं। पारिवारिक कार्य अवैतनिक ही होता है।
कार्यक्रम में उपस्थित अन्य मातृशक्तियो ने अपने अपने विचार व्यक्त किए। समाज में, सियासत में, और आर्थिक क्षेत्र में महिलाओं की तरक़्क़ी का जश्न मनाने का दिन बन चुका है. जबकि इसके पीछे की सियासत की जो जड़ें हैं, उनका मतलब ये है कि हड़तालें और विरोध प्रदर्शन आयोजित करके औरतों और मर्दों के बीच उस असमानता के प्रति जागरूकता फैलाना है, जो आज भी बनी हुई है।
बता दें की क्लारा ज़ेटकिन ने साल 1910 में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की बुनियाद रखी।अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस या महिला दिवस, कामगारों के आंदोलन से निकला था, जिसे बाद में संयुक्त राष्ट्र ने भी सालाना जश्न के तौर पर मान्यता दी।
कार्यक्रम में सैल्यूट तिरंगा के राष्ट्रीय ,राज्य एवं जिला स्तरीय पदाधिकारी ,स्वामीनारायण गुरुकुल के संस्थापक पुरानी स्वामी केशवचरणदास जी ,स्वामी कपिलजीवनदास जी ,डॉ. शैलेश लुहार ,हितेन उपाध्याय , डॉ. सचिन नारखेडे सहित महिला शिक्षिका , विद्यालय की ट्रस्टी समेत कई विद्यार्थी उपस्थित रहे।

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