आजकल जब भी किसी से मिलो
किसी एक जोडे़ के अलग होने की
बात सामने आती हैं,
तलाक की समस्या जटिल होती जा रही हैं,
सात फेरे जो सात जन्मों तक बंधने
की हिदायत देते थे,
एक जन्म भी निभा नहीं पा रहे हैं।
आखिरकार क्यों हो रहा है यह ?
रिश्ते क्यों बेमानी होते जा रहे हैं ?
सहनशीलता – त्याग, घर बचाने की भावना
सब कुछ को क्यों तिलांजली दी जा रही हैं ? कया वजह है आखिर कार ?
शायद नारी – पुरूष की समानता की बात ,
माता – पिता का बेटियों के घरों में दखलअंदाजी,
बेटे के माता – पिता का बहु को उचित दर्जा न देना हैं,
पति का पत्नी को उचित सम्मान न देना ,
आपसी वार्तालाप की कमी,
पैसे कमाने की होड़,
अपनी – अपनी दुनिया अलग बना लेना
उसी में खोये रहना,
एक – दूजे की परवाह न करना,
दूसरों को अधिक वरीयता देना,
दूसरों के जीवन से तुलना करना,
शक्य एक- दुसरे से ऊब जाना, एक दुसरे का आदर न करना, एक दुजे को समय न देना,
न जाने कितनी वजहें हो सकती हैं !
पर रिश्ते को बचाना सीखना होगा,
आपसी मतभेदों को सुलझाना होगा,
निरंतर एक-दूजे से संवाद करना होगा,
थोडा़ त्याग – थोडी़ सहनशीलता – ढेर सा वक्त,
आदर – प्यार, एक – दूजे को देना होगा।
हम भारतीय हैं,
हमारे संस्कार, हमारी परंपराए महान हैं, सनातन हैं,
विवाह जैसी संस्था को मजबूत बनाना होगा,
तलाक, अलग होना, छुट्टा छेड़ा लेना, divorce जैसे शब्दों को हमारे
शब्दकोश से अलविदा करना होगा।
(किंतु यदि परिस्तिथियां बहुत ज्यादा विषम हों तो दोनो परिवार आपस में विचार कर अंतिम निर्णय लें तो अलग बात है।