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भाजपा हाईकमान द्वारा वलसाड लोकसभा सीट पर धवल पटेल को उतारने के बाद क्षेत्र के लोगों की बढ़ी उम्मीदें

अब तक 7 लेटर बॉम्ब सोशल मीडिया पर वायरल करने के बाद भी विरोधियों की नहीं बनी बात:-
श्यामजी मिश्रा 
 वलसाड जिला। बीजेपी के ही अंदरूनी लोगों द्वारा बीजेपी उम्मीदवार धवल पटेल को कमतर आंकने की लगातार कोशिशों के बावजूद, इस निर्वाचन क्षेत्र के लिए धवल पटेल का चयन महत्वपूर्ण है। धवल की बुद्धिमत्ता और क्षमता स्पष्ट है, लेकिन सफलता का मार्ग चुनौतीपूर्ण है। उन्हें भाजपा के अंदरूनी लोगों द्वारा लेटर बॉम्ब के माध्यम से लगातार सोशल मीडिया हमलों का सामना करना पड़ा। जो कि भाजपा के बीच वर्तमान स्थिति में आंतरिक कलह को दर्शाती है साथ ही वोटर्स को दिग्भ्रमित करने का प्रयास किया गया। इसके अलावा भाजपा आलाकमान द्वारा उम्मीदवार थोपने के पार्टी नेतृत्व के फैसले का विरोध के रूप में सोशल मीडिया के माध्यम से प्रचार प्रसार किया गया। भाजपा उम्मीदवार धवल पटेल को बदलने के लिए अब तक सोशल मीडिया में 7 लेटर बॉम्ब वायरल किया जा चुका है। इसके अलावा कई जगहों पर धवल पटेल के विरोध में बाकायदा बैनर भी लगाये गये। वहीं इस बारे में बीजेपी नेताओं का कहना है कि यह सब कांग्रेस पार्टी के लोगों द्वारा दुष्प्रचार किया जा रहा है। जबकि आईटी इंजीनियर धवल पटेल वलसाड संसदीय सीट के लिए कांग्रेस के उम्मीदवार अनंत पटेल के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं। अब सवाल यह उठता है कि कांग्रेस पार्टी को धवल पटेल से क्या दिक्कत है ? इसमें कांग्रेस का हाथ है या भाजपा के उन लोगों का जिनको टिकट नहीं मिला। खैर यह तो जांच-पड़ताल करने के बाद ही मामला सामने आयेगा कि सोशल मीडिया पर इस लेटर बॉम्ब को किसने वायरल करवाया। यहां समझना बहुत जरूरी है कि धवल पटेल को लेकर आखिर वलसाड जिला में इतना हाय-तौबा क्यों मचाया गया ?  धवल पटेल के आने से किन नेताओं की दुकान बंद हो जायेगी ? या संसद का चुनाव जीतने का सपना किसी नेता का अब साकार नहीं हो पायेगा ? जबकि उन नेताओं को अच्छी तरह से पता चल गया कि आज तक जो वलसाड-डांग जिला विकसित नहीं हो पाया है, अब मोदीजी धवल पटेल के माध्यम से इस खास जिले को विकसित जिला बनाना चाहते हैं जो आज तक यहां के स्थानीय नेताओं द्वारा उपेक्षित किया गया है। गुजरात राज्य के दक्षिणी छोर पर स्थित जिला वलसाड एक समृद्ध इतिहास समेटे हुए है, लेकिन इसने अपनी विकास क्षमता को पूरी तरह से साकार नहीं कर पाया है। प्रधानमंत्री नरेंद्रभाई मोदी ने वलसाड-डांग जिला को विकसित करने के लिए कई योजनाएं लागू की, जिसमें विभिन्न प्रमुख योजनाओं में एक एस्टोल समूह योजना भी है। परंतु भ्रष्टाचार की वजह से कई ऐसी प्रमुख योजनाएं हैं जो संपूर्ण रूप से विकसित नहीं हो सकीं। जिस तरह से वलसाड जिला का विकास होना चाहिए था, परंतु उस तरह का विकास नहीं हो पाया है। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने धवल पटेल पर अपना विश्वास जताते हुए वलसाड-डांग लोकसभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतारा है। शुरुआत में बीजेपी के अंदरखाने विरोध के स्वर जरूर उठे और किसी उठाईगीर (अवांरा) द्वारा लेटर बॉम्ब सोशल मीडिया पर वायरल किया गया। शायद उसको पता नहीं था कि गुजरात राज्य हो या देश का कोई भी राज्य हो, जनता मोदीजी के चेहरे पर वोट देती है और मोदीजी के ऊपर भरोसा करती है, चाहे उम्मीदवार कोई भी हो। वैसे भी सबको पता है कि गुजरात की जनता मोदीजी का चेहरा देखकर वोट देती है न कि बीजेपी उम्मीदवार का चेहरा देखकर। वर्तमान में जितने भी विधायक व सांसद हुए हैं वे सिर्फ मोदी जी की बदौलत ही चुनाव जीतते आयें हैं, फिर भी धवल पटेल को लेकर इतना हाय-तौबा क्यों मचाया गया, यह समझ के परे है। बीजेपी के स्थानीय नेता भले ही कांग्रेस के ऊपर आरोप मढ़ कर पल्ला झाड़ने की कोशिश कर रहे हैं, परंतु हकीकत कुछ और ही है जो छिपाने की कोशिश की जा रही है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विश्वासपात्र धवल पटेल को आखिर वलसाड जिला के लिए क्यों चुना ?
 मौजूदा भाजपा उम्मीदवार धवल पटेल को एक संसाधन संपन्न और शिक्षित व्यक्ति के रूप में देखा जाता है जो जिले की विरासत को फिर से जीवंत करने में सक्षम है। आईटी में उनकी पृष्ठभूमि, वैश्विक कार्य अनुभव और भाजपा के लिए सोशल मीडिया पर प्रभाव ने उन्हें पार्टी का विश्वास दिलाया है। जबकि उनकी योग्यता के बावजूद, भाजपा के भीतर कुछ लोग सवाल उठाए  कि अन्य अनुभवी नेताओं और कार्यकर्ताओं के बजाय धवल पटेल को क्यों चुना गया। जबकि सभी लोगों को मालूम है कि मोदीजी उन कार्यकर्ताओं को ज्यादा तरजीह देते हैं जो ईमानदारी से जनता-जनार्दन का काम करते हैं और देश के विकास में अपना अहम योगदान देतें है। वर्तमान लोकसभा चुनाव में मोदीजी ने ऐसे-ऐसे कार्यकर्ताओं को चुनाव मैदान में उतारा है जो हमेशा लाइम-लाइट से दूर रहकर मेहनत और लगन के साथ जनता-जनार्दन व देश की सेवा करते रहे हैं । उन्हीं में से एक धवल पटेल हैं, जिन्होंने पार्टी द्वारा दिये गये कार्यों को मेहनत और ईमानदारी के साथ किया है। अब जब पार्टी ने उन्हें यह दायित्व निभाने के लिए दिया है तो खुलेदिल से सभी पदाधिकारियों को हाईकमान के निर्णय को मानकर पार्टी के लिए काम करने जरूरत है। वहीं पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से जुड़े व्यक्तियों का मानना है कि पार्टी हाईकमान का निर्णय अंतिम निर्णय होता है, जो मानते हैं कि इसे चुनौती नहीं दी जानी चाहिए थी।

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