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माँ विश्वम्भरी तीर्थयात्रा धाम में वैदिक परंपरा के अनुसार कई युवक-युवतियों का किया गया पाणिग्रहण संस्कार

श्री राम द्वारा बताई गई मूल वैदिक संस्कृति को पुनः उजागर करने हेतु वैदिक परंपरा के अनुसार विवाह:-
 विवाह उत्सव मनाकर समाज के प्रति सच्चा आतिथ्य दिखाने का किया जा रहा है अथक प्रयास:-
श्यामजी मिश्रा 
वलसाड। वलसाड जिला के राबड़ा गांव में स्थित सुप्रसिद्ध माँ विश्वंभरी तीर्थ यात्रा धाम में वैदिक परंपरा के अनुसार कई युवक-युवतियों का पाणिग्रहण संस्कार किया गया। यह भव्य समारोह श्री महापात्र के प्रेरणा व आशिर्वाद से आयोजित किया गया। जिसमें वर-वधू पक्ष के माता-पिता और बड़ी संख्या में महिला व पुरूष शामिल हुए । माँ विश्वंभरी तीर्थ यात्रा धाम में बहुत सादगीपूर्ण व सनातन वैदिक परंपरा के साथ कई जोड़े विवाह के बंधन में बंध कर गृहस्थाश्रम में प्रवेश किया।
 आज के वर्तमान समय में देखा-देखी में भव्य, दिखावटी और बेहद महंगी शादियां मनाई जाती हैं, जिसमें दूल्हा-दुल्हन सामाजिक प्रतिष्ठा और धन का प्रदर्शन करते हैं। शादी से पहले फिल्मी स्टाइल में प्री-वेडिंग की शूटिंग, शादी में मॉडर्न ड्रेस, गहने, बैंड बाजा, डांसिंग, आतिशबाजी का प्रदर्शन, भव्य मंडप की सजावट और डिनर, म्यूजिकल पार्टी, दहेज के पीछे लाखों-करोड़ों का धुआंधार खर्च किया जाता है। कुछ घंटों या एक दिन की उपस्थिति के बाद, महीनों की तैयारी चलती है और जीवन भर की बचत खर्च हो जाती है। जिनके पास आर्थिक सुविधा नहीं है वे भी कर्ज में डूबकर इस आयोजन को भव्य बनाते हैं। बिना समझे-बूझे की गई ऐसी दस शादियों में से आठ शादियाँ कम समय में ही टूट जाती हैं। ऐसी विवाह व्यवस्था को बदलने की तत्काल आवश्यकता है।
अगर शादी की योजना सोच-समझकर और सादगी से बनाई जाए तो खुशियां कई गुना बढ़ जाती हैं और बजट भी नहीं बिगड़ता। परंतु ऐसा प्रतीत होता है कि इसकी शुरुआत रबाडा गांव स्थित माँ विश्वम्भरी तीर्थ धाम से हुई। श्री राम द्वारा बताई गई मूल वैदिक संस्कृति को पुनः उजागर करने के लिए, इस मंदिर के संस्थापक श्री महापात्र, वैदिक परंपरा के अनुसार विवाह उत्सव मनाकर समाज के प्रति सच्चा आतिथ्य दिखाने के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं। जिस वैदिक परंपरा के अनुसार त्रेता युग में श्री राम और माता सीताजी का विवाह हुआ था, उसी रीति-रिवाज के अनुसार वर्तमान में इस धाम में कई नवदंपतियों का पाणिग्रहण संस्कार किया गया और वे सभी गृहस्थाश्रम में प्रवेश किया।
इस विवाह में नवविवाहित जोड़े एक महान लक्ष्य के साथ अपने वैवाहिक जीवन की शुरुआत करते हैं और जीवन भर विश्वास, प्यार, दोस्ती के साथ आगे बढ़ने का वादा करते हैं। विवाह को एक समस्या के रूप में नहीं बल्कि एक साधना के रूप में आगे बढ़ाया जाता है। श्री महापात्र कहते हैं कि सांसारिक जीवन ही सर्वोत्तम जीवन है। पति-पत्नी दोनों किसी भी संघर्ष से गुजर सकते हैं। यदि वे अच्छे और बुरे समय में एक-दूसरे का साथ दें, हर स्थिति का साहस के साथ सामना करें और कठिन समय में धैर्य रखें। जाहिर है, इस विवाह उत्सव की खास बात यह है कि दूल्हा-दुल्हन सप्तपदी के सात फेरे लेकर एक-दूसरे को सात वचनों से बंधते हैं। आत्मा की रक्षा के लिए ये भी महत्वपूर्ण हैं (1) माता-पिता, बड़ों का सम्मान करना (2) शक्ति की पूजा करना (3) सनातन वैदिक संस्कृति के अनुसार जीवन जीना (4) प्रकृति, पर्यावरण की रक्षा करना और (5) गायमाता का पालन-पोषण करना। ऐसे पांच ऋण बंधनों से मुक्ति पाने के लिए ऐसा कटिबद्धता भी बनाई गई है। जाहिर है, ऐसे सफल विवाहों से प्रेरित होकर, कई नवविवाहित जोड़े इस प्रणाली के अनुसार कदम दर कदम प्रभुत्व की ओर बढ़ रहे हैं।
दाम्पत्य एक श्रेष्ठ आध्यात्मिक साधना है:- श्री महापात्र 
हमारे ऋषि-मुनियों ने वैदिक संस्कृति को कायम रखकर मानव को आदिम से मानव बनाया है। फिर त्रेता युग में श्री राम ने वैदिक संस्कृति के अनुसार मर्यादित जीवन जीकर इस संस्कृति का पुन: प्रवर्तन किया और एक आदर्श परिवार व्यवस्था की स्थापना की। हमारी भारतीय मूल वैदिक संस्कृति में मानव जीवन को सोलह संस्कारों वाला माना गया है। भारतीय संस्कृति के अनुसार विवाह कोई शारीरिक या सामाजिक अनुबंध मात्र नहीं है, यहां दाम्पत्य को एक श्रेष्ठ आध्यात्मिक साधना का भी रूप दिया गया है। इसलिए  हमारे ऋषि-मुनियों और संस्कृति के ज्योतिर्धरों ने कहा है कि “धन्यो गृहस्थाश्रम:”। गृहस्थ ही समाज को अनुकूल व्यवस्था एवं विकास में सहायक होने के साथ-साथ श्रेष्ठ नई पीढ़ी बनाने के भी कार्य करते हैं। विवाह का अर्थ है दो आत्माओं, स्त्री और पुरुष एक-दूसरे के प्रति स्नेह महसूस करना, एक-दूसरे के प्रति पूर्ण समर्पण। जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा पवित्र अग्नि को साक्षी मानकर लिया गया सातफेरा जीवन के लिए एक अटूट बंधन बनाता है। वहीं अपने संसाधनों से ब्रह्मचर्य, वानप्रस्थ एवं सन्यास आश्रमों के साधकों को वांछित सहयोग देते रहते हैं। ऐसे सद्गृहस्थ बनाने के लिए विवाह को रूढ़ियों-कुरीतियों से मुक्त कराकर श्रेष्ठ संस्कार के रूप में पुनः प्रतिष्ठित करना आवश्यक है। वहीं युग निर्माण के अंतर्गत विवाह संस्कार के पारिवारिक एवं सामूहिक प्रयोग सफल और उपयोगी सिद्ध हुए हैं।

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