गीता जैन के चुनावी जंग में उतरने से बढ़ी मेहता की टेंशन
विकास के बजाय जातिवाद तथा भ्रष्टाचार का मुद्दा हावी
राजस्थानी, गुजराती तथा उत्तर भारतीय मतदाताओं को रिझाने की कवायद
गीता जैन के चुनावी जंग में उतरने से बढ़ी मेहता की टेंशन
कुमार राजेश
मीरा-भायंदर। गत चुनाव में मेहता की सबसे बड़ी सहयोगी रहीं गीता जैन भाजपा से बागी होकर इस बार निर्दलीय चुनावी मैदान में हैं। ऐसे में सभी की नजर भाजपा के परंपरागत राजस्थानी-गुजराती और जैन मतदाताओं पर है। मुस्लिम मतदाताओं की संख्या भी अच्छी -खासी है। उन्हें रिझाने के लिए कांग्रेस के मुझफ्फर हुसैन चुनावी मैदान में हैं।
उत्तर भारतीयों और मराठी मतदाताओ की बड़ी तादाद होने के साथ ही ईसाई, बंगाली, दक्षिण भारतीय वोटरों वाले इस विधानसभा सीट पर इस बार त्रिकोणीय मुकाबले के आसार नजर आ रहे हैं। ऐसे में मुझफ्फर-मेहता की लड़ाई के साथ निर्दलीय प्रत्याशी गीता जैन की दमदार मौजूदगी ने इस पूरे संघर्ष को त्रिकोणीय बना दिया है।
नरेंद्र मेहता के सामने भाजपा के परंपरागत वोटरों और जैनो के मतों का बिखराव रोकना बड़ी चुनौती है, क्योंकि भाजपा व जैन समाज से ताल्लुक रखने वाली भाजपा की नगरसेविका और पूर्व महापौर गीत जैन भी निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अपना भाग्य आजमा रही हैं। ऊंट किस करवट बैठेगा, यह कहना काफी मुश्किल है। तीनों प्रमुख प्रत्याशी जातीय समीकरण और छवि के आधार पर अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहे हैं।
जातीय समीकरण में इस विधानसभा क्षेत्र से विकास के मुद्दे लगभग गायब से हो गए हैं। लगभग 1700 करोड़ के बजट वाली मीरा-भायंदर महानगरपालिका परिसर में आने वाली इस विधानसभा सीट को एक ऐसे रहनुमा की तलाश है, जो यहां मनपा में फैले भ्रष्टाचार, लोगो की स्वास्थ्य, शिक्षा के साथ बुनियादी व्यवस्था में सुधार कर सके, लेकिन 90 के दशक से शुरू हुई आयाराम-गयाराम की राजनीति अब तक जारी है। कौन किसके पक्ष में-कौन किसके विरोध में, हम सब नेता तो हैं भाई-भाई की राजनीति के फेर में यह क्षेत्र ऐसा उलझा कि यहां का आम नागरिक आज भी जहां के तहां है। हां, विकास हुआ है वो सिर्फ और सिर्फ यहां के राजनेताओं, बिल्डरों, मनपा के अधिकारियों व ठेकेदारों का। एक बार फिर यही लोग जो कभी ईधर-कभी उधर थे, चुनावी शोर-शराबे के साथ मतदाताओं के दरवाजे पर दस्तक दे रहे हैं। इन सबके बीच कहीं जातिवाद तो कहीं विकास तो कहीं भ्रष्टाचार बनाम शिष्टाचार के मुद्दे हावी हैं। परिसर और सोशल मीडिया पर हर कोई किसी उम्मीदवार की अच्छाई-बुराई व्यक्त करने में लग सा गया है। मतदान में अब 13 से 14 दिन बचे हैं और यहां के मतदाताओं का मिजाज इस बार त्रिकोणीय संघर्ष की ओर संकेत दे रहा है। विदित हो कि यहां दो दशक से चुनाव में जातिवाद हावी रहा है। इस बार भी वैसा ही दिख रहा है। राजस्थानी-गुजराती-जैन वोटों का बंटवारा होने की स्थिति में कांग्रेस को फायदा हो सकता है। गीता जैन के चुनावी मैदान में उतरने से भाजपा के परंपरागत और जैन वोटों का बंटवारा गीता-मेहता में हो सकता है। जहां एक ओर भाजपा के वोटरों में गीता सेंध लगा सकती हैं, तो दूसरी ओर मुझफ्फर हुसैन की मुस्लिम वोटरों पर अच्छी पकड़ है । चुनावी जंग में अन्य मुस्लिम उम्मीदवारों की मौजूदगी के बावजूद हुसैन को नुकसान होने की संभावना कम ही है। ऐसे में अगर भाजपा के वोट बैंक में गीता जैन बड़ी सेंध लगा पाने में कामयाब रहीं तो ऐसी स्थिति में कांग्रेस के उम्मीदवार मुझफ्फर हुसैन या स्वयं गीता को भी बढ़त मिल सकती है। निर्दलीय गीता की मजूबती से कांग्रेस मन ही मन मुस्कुरा सी रही है। गीता जैन का दावा मजबूत दिख रहा है, और वह लड़ाई को त्रिकोणीय बना सकती हैं। गीता जैन को मिलने वाले मतों पर ही इस सीट का नतीजा निर्भर करेगा। भले ही गीता जैन मेहता की तरह भाजपा घोषित और दमदार उम्मीदवार नहीं, लेकिन भाजपा के वोटों में बंटवारा या सेंध तो लगा ही सकती हैं। भाजपा के परंपरागत वोटर भ्रम में पड़ सकते हैं कि वोट मेहता को दिया जाए या गीता को, क्योंकि बकौल गीता, वे भी मोदी भक्त भाजपाई हैं और जीतकर भी भाजपा में ही आने वाली हैं। ऐसी घोषणा वे चुनावी मंचो से कर रही हैं। कुल मिलाकर इस त्रिकोणीय मुकाबले में भाजपा नुकसान में और कांग्रेस फायदे में रहेगी।