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पेंढ़धा का ‘जानकीधोध’ एक अज्ञात लेकिन अद्वितीय प्राकृतिक सुंदरता के साथ. 

पेंढ़धा का ‘जानकीधोध’ एक अज्ञात लेकिन अद्वितीय प्राकृतिक सुंदरता के साथ.
जानकीधोध का अनोखा इतिहास, जिसमें एक लोककथा है कि इसमें देवताओं ने स्नान किया !
धरमपुर . मानसून के शुरू होते ही जिले का वन क्षेत्र बेहद हरा-भरा हो जाता है. पहाड़ी इलाकों में बारिश का पानी गिरते ही जगह-जगह छोटे-छोटे झरने बहने लगते हैं. नदी से मिलने के लिए पहाड़ियों से निकलने वाले झरनों को कुछ स्थानों पर झरनों के रूप में देखा जा सकता है, जो इस तरह के शानदार दृश्यों के साथ मंत्रमुग्ध कर देते हैं. पहाड़ी क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति के कारण जलप्रपात कई स्थानों पर पाए जाते हैं. लेकिन कुछ स्थान ऐसे भी हैं जहां जलप्रपात से पौराणिक कथा या लोककथा जुड़ी हुई है. ऐसा ही एक झरना है धरमपुर तालुका में पेंढ़धा का ‘जानकीधोध’.  लोककथाओं के अनुसार जिस स्थान पर देवताओं ने स्नान किया वह पेंढ़धा गांव के आंधोणी फलिया का ‘जानकीधोध’ है. स्थानीय वार्ली भाषा में आंधोणी का अर्थ है ‘स्नान करना’. पेंढ़धा गांव धरमपुर से 29 किमी की दूरी पर नार नदी के तट पर स्थित है. धरमपुर से धामढ़ी के रास्ते में यह फुलवाड़ी गांव से शुरू होकर नदी के किनारे पेंढ़धा के आंधोणी फणिया पहुंचती है. सुरम्य जानकीधोध कुछ ही दूरी पर नार नदी से मिलता है. जानकीधोध को तीन स्तरों से बहते हुए देखने के लिए नार नदी के खंड में जाना पड़ता है. सड़क के काफी पास स्थित यह जलप्रपात दिवाली तक इसी तरह बहता रहता है. इस झरने की धाराएं पत्थरों पर ऐसे गिरती हैं मानो शिवलिंग का अभिषेक कर रही हों. जो बाहुबली फिल्म के वॉटरफॉल सीन की याद दिलाता है. झरने के सामने पर्वत श्रृंखला और नार नदी द्वारा लिये गये गए मोड़ एक आलौकिक दृश्य बनाते हैं.

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