माँ विश्वंभरी तीर्थयात्रा धाम, धरती पर स्वर्ग लोक के समान। इस तीर्थ यात्रा धाम में सभी की मनोकामनाएं होती है पूर्ण।
माँ विश्वंभरी धाम भारत के पश्चिम किनारे पर, गुजरात राज्य के दक्षिण भाग में स्थित वलसाड जिले के पूर्व में है। सह्याद्रि की गूंजायमान पर्वतमाला और पश्चिम में है सशब्द लहराता अरब सागर । इस जिले की उपजाऊ जमींन पर घने और बड़े बड़े आम के, सागवान और खैर के अनगिनत पेड़ों की तथा विविध फूलों के पौधों की हरी भरी चादर फैली हुई है। वलसाड के दक्षिण में बारह महीनों प्रवाहित रहनेवाली “पार” नामक नदी के किनारे सुन्दर गाँव बसा हुआ है। भगवान विष्णु के दस अवतारों में से एक श्री परशुराम की कर्मभूमिवाला यह विस्तार प्रकृति के अनुपम सौंदर्य से सदा हरा भरा रहता है। ऐसे मन को शांति प्रदान करने वाले वातावरण के बीच छोटे से गाँव राबड़ा में माँ विश्वंभरी का अनुपम, अलौकिक धाम खिला है। केवल ९० दिनों में ही निर्मित विश्व कक्षा का यह अद्भुत धाम निकट भविष्य में ही जगतभर में प्रसारित होनेवाली प्रेरक, वैचारिक, आध्यात्मिक क्रांति के केंद्र के रूप में जाना जायेगा। यह धाम जगत के ज्ञान-भक्ति-कर्म का सुनहरा आलोक फैलाता है और भवसागर पार करने के आतुर लोगों के लिए दीपस्तंभ बनकर सुनहरा प्रकाश फैला रहा है। स्वर्गलोक के समान यह विश्वकक्षा का धाम माँ विश्वंभरी का धाम है।
विश्वंभरी माँ कौन है ? माँ विश्वंभरी का परिचय देने में वास्तव में तो पृथ्वी पर का सम्पूर्ण ज्ञान , सारी भाषाओं के शब्द भंण्डार और जीवमात्र का एकत्रित भाव भी कम पड़ेगा। परंतु ऐसा होने पर भी माँ के परम दिव्य रूप -गुण-कर्म की महिमा गाये बिना मन रह नहीं सकता। माँ विश्वंभरी अनंत ब्रह्मांड की रचयित्री एवं समग्र सृष्टि की सर्जनहार (Creater of universe) है। ब्रह्मा –विष्णु- महेश को उत्पन्न करने वाली माँ है। जिन्होंने ही सूक्ष्मातिसूक्ष्म जीव से लेकर मनुष्य तक तमाम जीवों और आकाश-पाताल-पृथ्वी की रचना की है। इन सभी का सर्जन ,संवर्धन और संहार माँ की आँख के एक इशारे पर होता है। उत्क्रांति की अकल्पनीय लीला रचाकर उन्होनें ही मनुष्य को सृष्टि में विशिष्ट स्थान पर स्थापित किया है। जिससे वह इस पारलौकिक पराशक्ति का गुणगान गाते गाते आत्मोद्धार प्राप्त कर सके। माँ विश्वंभरी समस्त देवी देवताओं की माँ हैं। माँ सर्वव्यापी सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ और सर्व सत्ताधीश हैं । इस सृष्टि पर जब न तो सूर्य – चन्द्र थे न ही देव और दानव, न थे ऋषि-मुनि और तपस्वी, अरे ! यहाँ तक कि अन्य कोई सृष्टि ही नहीं थी, तब भी माँ विश्वंभरी तो विद्यमान थी ही। आज भी है और संपूर्ण सृष्टि का विनाश होने पर भी रहेंगी। किसी विरल सृजनशील क्षण में माँ ने आकाश -पृथ्वी -पाताल इस प्रकार तीन लोक की सृष्टि की रचना की। इसके सुचारु संचालन हेतु माँ ने ब्रह्मा, विष्णु और महेश को उत्पन्न किया। वह परम पवित्र दिन था अक्षयतृतीया। माँ ने ही पानी में रहने वाले (जलचर), जमीन पर विचरण करने वाले (भूचर) एवं आकाश में उड़ने वाले (खेचर) जीव उत्पन्न कर उनके सर्जन की जिम्मेदारी ब्रह्मा को, संवर्धन-पोषण की जिम्मेदारी विष्णु को और संहार की जिम्मेदारी शिव को सौंप दी। तब से वे इस विराट चक्र का संचालन माँ की इच्छा एवं आज्ञानुसार कर रहें है। माँ को हम विश्वविधाता, जगतजननी, राजराजेश्वरी, पराशक्ति, महाशक्ति, आद्यशक्ति जैसे अनगिनत नामों से पहचानते-पुकारते हैं। युगों से हम स्तुति करते आये हैं कि ” विश्वंभरी अखिल विश्व की जनेता, विद्यासहित ह्रदय में बसना विधाता”
माँ विश्वंभरी पृथ्वीलोक पर क्यों प्रकट हुईं ?
माँ विश्वंभरी त्रेतायुग में नहीं, द्वापरयुग में नहीं और इस घोर कलयुग में पृथ्वी पर प्रकट हुईं इसके पीछे इनका परम् पवित्र हेतु क्या रहा होगा ? यह समझने का प्रयास करते हैं। सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलयुग। प्रत्येक युग परिवर्तन के साथ साथ मनुष्य के आचार विचार, रहन-सहन एवं मन:स्थिति में भी परिवर्तन आता गया। सकरात्मकता में कमी और नकारात्मकता में अत्याधिक वृद्धि यह कलयुग की मुख्य पहचान बनी है ।अधर्म, अनीति अमानुषता की कोई सीमा नहीं रही । भ्रष्टाचार, व्यभिचार, दुराचार प्रतिदिन नई सीमाओं का सृजन करते जा रहे हैं। आज मनुष्य आत्मकल्याण का सुख एवं मन की परम शांति की खोज को एक तरफ रखकर अंधश्रद्धारूप अधर्म में उलझ गया है I मनुष्य शक्तिपूजा को छोड़कर व्यक्तिपूजा में फंस चूका हैं। आज के मनुष्य के घर में परम शक्ति, दिव्य शक्ति का उचित स्थान ही नहीं रहा, इस कारण वह दिशाज्ञान भूल चूका है। भौतिक सुख एवं दूसरों की नकल के पीछे की अंधी दौड़ में पूर्ण रूप से क्षतिग्रस्त हो गया है व आत्मतेज खो बैठा है। निष्ठा, प्रमाणिकता, सदभाव जैसे सद्गुणों को छोड़कर यह बहुत ज्यादा धन संपत्ति एकत्रित करने में ही अपनी सारी शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक शक्ति का व्यय कर हकीकत में तो दरिद्र बन रहा है। इस मृगजाल के पीछे के भ्रम भरे भंवर में इच्छित सफलता न पाने पर असंतोष का जहरीला कीड़ा इसे भीतर से निरंतर काटता रहता है।आधी व्याधि उपाधि की फौलादी जंजीरों में जकड़ा यह मानव जीवन के अंत तक तड़पता रहता है। आज के घरों में से सामान्य रूप से पवित्रता सात्त्विकता का लोप हुआ है। किसी समय मजबूत रहे संबंधों में दरार आ गई है। योग्य घर एवं अधिकारी माता-पिता के अभाव में पृथवी पर सात्त्विक आत्माओं का अवतरण अटक गया है। इसीलिए तामसी आत्माओं की अधिकता से पृथ्वी खदबदा रही है।अत्याचार, व्यभिचार, भ्रष्टाचार, पापाचार दसों दिशाओं में फलफूल रहे हैं। परिणाम स्वरुप अराजकता का अजगर अविरोध ग्रस रहा है। श्री राम द्वारा चरितार्थ की गई कुटुम्ब व्यवस्था नष्ट- भ्रष्ट होने लगी है। श्री कृष्ण द्वारा प्रबोधित समाज व्यवस्था छिन्न भिन्न होती जा रही है। लोग वैदिक संस्कृति को भूल रहे हैं। प्रकृति का अक्षम्य ऐसा घोर खंडन हो रहा है। पृथ्वी पर व्याप्त इस घोर कलयुग के इस दारुण यातना व्यथा की संचित प्रस्तुति तमाम देवी देवताओं एवं कुलदेवीओं ने माँ विश्वंभरी समक्ष की। इसलिए अधर्म का नाश करने, सत्यधर्म और कर्म की स्थापना करने, कुलदेवीओं को घर में योग्य स्थान दिलाने, मुमुक्षुओं को मोक्ष दिलाने एवं अपने सच्चे भक्तों को उबारने माँ विश्वंभरी पृथ्वीलोक में प्रकट हुई हैं।
माँ विश्वंभरी का इस विश्व में प्रकट होना स्वाभाविक है कि यह समस्त मानव जाति के सर्वतोमुखी कल्याण के लिये ही हो। पृथ्वीलोक की दयनीय स्थिति से देवी देवताओं के करूण पुकार को सुनकर द्रवित हुई माँ विश्वंभरी एक अभूतपूर्व निर्णय लेती है – पृथ्वीलोक में पधारने का । इसके साथ ही पृथ्वी पर सत्यधर्म और कर्म की स्थापना करने और वैश्विक-वैचारिक आध्यात्मिक क्रांति की मशाल थमाने माँ, मानवश्रेष्ठ एवं कर्मयोगी किशान पुत्र श्री विठ्ठलभाई को चुनती है। यह न तो था अकस्मात और न ही था योगानुयोग। यह तो इनके अनेक जन्मों के सत्कर्मो की पूंजी यानि कि जमा हुए प्रचंड पुण्य का स्वाभाविक परिणाम था। ज्यादा महत्त्व की बात तो यह है कि अपनी इस पुण्य पूंजी का उपयोग उन्होंने अपने किसी भी जन्म में अपने परिवार के लिये तो क्या, खुद अपने लिये भी नहीं किया था। श्री विठ्ठलभाई अनेक जन्मों से अपना कर्म उत्तमरूप से करते हुए परम शक्ति की आराधना भी करते थे। हमारे तमाम देवी देवताओं में सर्वश्रेष्ठ-सर्वोच्च कौन यह जानना और उनका दर्शन करना यह इनका परम लक्ष्य था। इनके सत्कर्मो की सुगंध ब्रह्माण्ड तक फ़ैल चुकी थी, यहाँ तक की माँ स्वयं पृथ्वी पर पधारने के लिये इन्हें निमित्त बनाती हैं। माँ पहले तो यह मानवश्रेष्ठ की कठिन, बेहद मुश्किल ऐसी सत्रह कसौटियां करती हैं। इन कसौटिओं में आर्थिक, सामाजिक, शारीरिक, क्रोध, धैर्य, सहनशीलता, मोह, माया, लोभ, लालच, और चरित्र की कसौटियों का समावेश होता है। माँ की प्रत्येक कसौटी में से यह मानवश्रेष्ठ सकुशल और प्रसन्न मुद्रा में पार उतरतें हैं।
श्री विठ्ठलभाई की योग्यता-पात्रता पर मोहर समान विरल आध्यात्मिक इतिहास तारीख ০६ /০९ /१९९९ पर रचा जाता है। माँ विश्वंभरी स्वयं स्वर्गलोक से पृथ्वीलोक पर पधारकर उन्हें दर्शन देती है। माँ स्वयं इन्हें “महापात्र” के रूप में संबोधित कर एक नई पहचान देती है । माँ और उनके यह परम भक्त के बीच ४५ मिनट तक दिव्य संवाद चलता है, जिसमें कितने ही लौकिक पारलौकिक विषय संबन्धित संवाद होतें है। उनकी तीव्र जिज्ञासा को माँ दिव्यज्ञान द्वारा संतोषित करती है। माँ विश्वंभरी ने महापात्र द्वारा संदेश दिया कि “अंधश्रद्धा छोड़कर घर की ओर वापस लौटो और घर को ही मंदिर बनाओ”। वैदिक विचारधारा, सच्ची भक्ति, कर्मयोग से भरा हुआ जीवन, महाशक्ति के पास पहुँचने का अत्यंत सरल एवम् सीधा सा मार्ग, माँ विश्वंभरी के दिव्य संदेश से सिर्फ स्वहित देखने के बजाय उनका प्रचार, दिशासूचन लिए श्री महापात्र ने मनुष्य जाति का कल्याण करने की नि:स्वार्थ भावना के बल पर इस धाम का निर्माण कर के वैश्विक वैचारिक क्रांतिकारी मशाल की ज्योत प्रज्जवलित की है। जिसका प्रकाश विश्व के असंख्य लोगों तक पहुँचा है और उनके घर पवित्र मंदिर बनकर प्रकाशित हो रहें है और वह घर आधि-व्याधि-उपाधि से मुक्त बन गए है। माँ की असीम कृपा के पश्चात् भी ऐसी तीव्र कर्मनिष्ठा ने ही श्री महापात्र को सच्चा कर्मयोगी बनाया है। प्रकृति के सारे नियमों के आधीन रहकर श्री महापात्र दैवीगुणों के आचरण वाला प्रेरक जीवन जी रहें हैं और आज भी वो अपनी कमाई का अपने कर्मो का ही खाते हैं, अपने परिवारजनों तथा दूसरों को भी खिलाते है।
स्वर्गलोक समान – माँ विश्वंभरी तीर्थयात्रा धाम
इस धाम में स्वर्ग की अनुभूति कराने वाली माँ की अलौकिक पाठशाला, हिमालय (शिव दर्शन), गोवर्धन पर्वत ( गोकुलधाम), गीर गायों की गौशाला (वैकुण्ठ धाम), श्री राम कुटीर (पंचवटी), तथा नयनरम्य प्राकृतिक सौंदर्य के बिच बाग़ में शेर, गजराज, जिराफ, हिरन, बन्दर जैसे प्राणिओं और चिड़िया, मोर, कबूतर आदि पंछियों की जिवंत लगने वाली प्रतिकृतियाँ हमारे मन को हर लेती हैं। विशाल घने पेड़, पौधे, विविध तीर्थ स्थानों से अलग ऐसा अतुल्य सौंदर्य, इन सभी के बीच में खाली स्थान की पर्याप्त व्यवस्था, तीर्थस्थानों में भाग्य से मिलने वाली बेहतरीन स्वच्छता, पार नदी की शीतलता को संग लिए बहती मीठी हवा और इनमें सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण बात धाम में प्रवेश पाते ही प्रत्येक व्यक्ति के ह्रदय की गहराई में होने वाली विशिष्ठ अनुभूति-माँ विश्वंभरी के इस धाम को अद्वितीय बनाती है। जैसे माँ की गोद में बैठे हो ऐसी परम शांति और आराम का अहसास कराती है। इस धाम को जितना देखते हैं उससे अधिक देखने की इच्छा जागृत होती हैं और जितना दिव्य अनुभव पाते है उससे अधिक पाने की तमन्ना बलवती होती है। माँ विश्वंभरी तीर्थयात्रा धाम का मुख्य पांच उद्देश्य हैं – १. माता-पिता २. कुलदेवी ३. गौमाता ४. वैदिक संस्कृति ५. प्रकृति
माँ विश्वंभरी धाम तीर्थयात्रा धाम मुंबई वलसाड नेशनल हाइवे रोड, अतुल चोकड़ी, चणवई रोड, मु।-राबडा, तहसील/जिल्ला-वलसाड (गुजरात राज्य) में स्थित है। वलसाड शहर के पास से होकर गुजरने वाले वलसाड-मुंबई हाईवे से केवल सात किलोमीटर की दूरी पर स्थित राबडा गाँव में माँ विश्वंभरी का धाम है। वलसाड शहर आने के लिये बस, रेल्वे तथा नेशनल हाइवे के किसी भी निजी वाहन और वलसाड से विश्वंभरी धाम पहुँचने के लिये बस, रिक्क्षा के अलावां निजी वाहन भी उपलब्ध है।