सफलता की कहानी
सजनी बरडा गांव के गुलाबभाई खरपड़ी आत्मनिर्भर बनकर दूसरों को भी आत्मनिर्भर बना रहे हैं.
आदिवासी शिक्षा एवं ग्रामीण चैरिटेबल ट्रस्ट के माध्यम से सजनीबरडा और आसपास के अन्य गांवों के युवक-युवतियों को स्वरोजगार की ओर मोड़ा जा रहा है.
किसानों को पारंपरिक खेती की जगह एक औषधीय फसल सफेद मूसली की खेती कर किसानों को आत्मनिर्भर बनाया जा रहा है.
पांडवखड़क के छोटे भाई सोमभाई निकुणिया सफेद मूसली की खेती कर आत्मनिर्भर बन रहे हैं.
अक्षय देसाई
वलसाड :- आज आदिवासी किसान अपने सामान्य ज्ञान और बुद्धि के साथ राज्य सरकार की विभिन्न योजनाओं का लाभ उठाकर रोजगार प्राप्त कर रहा है, लेकिन दूसरों की मदद करके वह राज्य सरकार की योजनाओं से भी लाभान्वित हो रहा है. आज गुलाबभाई जानुभाई खरपडी की बात करता हूं, जो एक आदिवासी किसान हैं और वलसाड जिला के धरमपुर तालुका के सजनी बरडा में रहते हैं. धरमपुर तालुका के पहाड़ी इलाके में रहने वाले गुलाबभाई 6वीं तक पढ़ाई की है. राज्य सरकार के वन अधिकार अधिनियम -2006 के तहत उन्हें आवंटित 1.5 एकड़ भूमि और 20 गुंटा भूमि पर वे फसल उगाते थे, वे अपने और अपने परिवार की धान, नगली, तुवर की पारंपरिक खेती कर गुजारा कर रहे थे. जो जलवायु परिवर्तन के कारण फसल खराब हो जाते तथा फसलों में रोगजनित जीवाणु जैसे कारकों के कारण आय कम होती थी. जिससे परिवार का भरण-पोषण करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता था.
गुलाबभाई को अपने परिवार का अच्छी तरह से भरण-पोषण कर सकें, उसके लिए उन्होंने अपने पारंपरिक खेती से बागवानी जैसी अन्य खेती में अपना मन बदल लिया. गुलाबभाई ने वलसाड जिले के बागवानी विभाग से संपर्क किया. जहां से उन्हें उद्यानिकी कार्यालय के सहायक उद्यान अधिकारी ए. एम. वोरा ने जरूरी मार्गदर्शन व सलाह दिया. जिसके अनुसार राज्य सरकार किसानों को हल्दी, सफेद मूसली, अश्वगंधा, कुंवारपाठु आदि औषधीय फसलों की खेती के लिए लागत का 75 प्रतिशत अथवा 11,250 रुपये प्रति हेक्टेयर सब्सिडी दे रही है.
इस योजना का लाभ लेने के लिए गुलाबभाई ने राज्य सरकार के कृषि विभाग के आई किसान पोर्टल पर ऑनलाइन आवेदन किया. उनके ऑनलाइन आवेदन को मंजूरी मिलने के बाद, उन्होंने अपनी 1.5 एकड़ भूमि में औषधीय फसल सफेद मूसली की खेती की शुरुआत की. मुसली की खेती के लिए बीज अहवा-डांग के एक किसान और वन औषधीय बोर्ड, गांधीनगर के सदस्य जयेशभाई मोकासी के पास से लाकर अपनी 1.5 एकड़ जमीन में सफेद मूसली की खेती की शुरूआत की. यह खेती मानसून में केवल चार महीने में की जाती है. इस प्रकार गुलाबभाई ने इस खेती में 10,000 रुपये खर्च किए. और मुसली गांठों की बिक्री से उन्हें 50 हजार की आय के साथ उनकी शुद्ध आय 40 हजार हुई. इस प्रकार वे स्वयं इस खेती को करके आत्मनिर्भर हो गए हैं.
गुलाबभाई ने अपने समाज के उत्थान के लिए उनके द्वारा स्थापित आदिवासी शिक्षा और ग्रामीण चेरीटेबल ट्रस्ट के माध्यम से राज्य सरकार के आदिवासी विभाग की तरफ से उन्हें विभिन्न पेशों में प्रशिक्षण देकर स्वरोजगार शुरू कर उन्हें आत्मनिर्भर बनाया जाये, इस उद्देश्य से उन्होेंने आसपास के गांवों के युवक-युवतियों के लिए प्रायोजना अधिकारी वलसाड के कार्यालय जाकर जरूरी व्यवसाय जैसे बढ़ईगीरी, हस्तशिल्प, सिलाई, कालीन बनाने आदि जैसे आवश्यक व्यवसायों में प्रशिक्षण दे रहे हैं और उन लाभार्थियों को टूलकिट भी प्रदान कर रहे हैं जो यह स्वरोजगार शुरू करना चाहते हैं और उन्हें आत्मनिर्भर बनने में मदद कर रहे हैं. सजनीबरडा के इस ट्रस्ट के माध्यम से आदिवासी विभाग के समन्वय से गांव के युवक-युवतियों को स्वरोजगार दिलाने में मदद करने के साथ-साथ गांव के किसानों को उनकी परंपरागत खेती से बागवानी की ओर मोड़ा जा रहा है और उन्हें भी आत्मनिर्भर बनाया जा रहा है. हाल ही में इस साल गुलाबभाई ने सरकार के कृषि विभाग के आई किसान पोर्टल पर मूसली की खेती के लिए अपने गांव और आसपास के गांव पीपलपाड़ा, पांडवखडक, भवाड़ा, मोरदहाड, आंबोसी भवठाढ़, बिल्धा, हनुमतमाण, उलसपेडी, वाघवण, तढ़सीया, बोपी को मिलाकर कुल 94 गांव के किसानों ने ऑनलाइन आवेदन किए थे, जिसमें से 74 किसानों के आवेदनों को बागवानी विभाग ने मंजूरी दे दी है.
उद्यान विभाग वलसाड द्वारा उनके स्वीकृत 74 आवेदनों के अनुसार ट्रस्ट द्वारा इन सभी किसानों की 33.48 एकड़ में औषधीय फसल के रूप में सफेद मूसली की खेती शुरू कर दी है. जिसमें पांडवखड़क के छोटे भाई सोमाभाई निकुणीया और उनके 3 भाई वन अधिकार अधिनियम-2006 के तहत मिली 5 एकड़ और 15 गुंठा भूमि पर संयुक्त खेती कर अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं. उन्हें सफेद मूसली की खेती के लिए ट्रस्ट से बीज मिला और सफेद मूसली की खेती के संबंध में आवश्यक मार्गदर्शन मिला. उन्होंने इसी साल जुलाई में अपनी 15 गुंठा जमीन पर सफेद मूसली की खेती भी शुरू की, जिसमें उन्हें फसल के बीज का किलो 400 रूपये के हिसाब से उन्हें बीज का 1000 से 1200 रूपये और तंबू खेत जो उनके घर का ही है, उनका 10,000 रूपये का खर्च होता है. जिसके सामने सफेद मूसली की गांठों की बिक्री से होने वाली आय 50 हजार रुपये होती है, जो उन्हें 40 हजार रुपये का शुद्ध आय प्राप्त हुई है. जिससे वे चारों भाई अपने परिवार का अच्छी तरह से भरण-पोषण कर रहे हैं.