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Sunday, May 12, 2024
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वर्तमान समय में जैविक खेती समय की मांग है:- राज्यपाल श्री आचार्य देवव्रत

लोगों को पौष्टिक खाद्य व फसलें उपलब्ध कराने तथा किसानों की आय बढ़ाने का प्राकृतिक खेती एक पुनर्जागरण अभियान है:-
राज्यपाल ने विभिन्न मीडिया प्रतिनिधियों से राज्य के किसानों एवं आम नागरिकों के बीच पुनरुद्धार के इस कार्य के प्रति जागरूकता फैलाने की अपील किया:-
स्टार मीडिया न्यूज ब्यूरो, 
गांधीनगर। राजभवन, गांधीनगर में प्राकृतिक खेती पर सेमिनार में उपस्थित विभिन्न समाचार माध्यमों के संपादकों-प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए राज्यपाल श्री आचार्य देवव्रत ने कहा कि वर्तमान समय में प्राकृतिक खेती से जुड़ना समय की मांग है। ग्लोबल वार्मिंग के नकारात्मक प्रभावों और गिरते कृषि उत्पादन तथा स्वस्थ जीवन के लिए प्राकृतिक खेती ही एकमात्र प्रभावी समाधान है।
राज्यपाल ने देश में हरित क्रांति की शुरुआत करते हुए कहा कि 60 के दशक में किये गये एक अध्ययन के अनुसार भारत की मिट्टी में दो से ढाई प्रतिशत कार्बन था, लेकिन जिस तरह से यूरिया सहित रासायनिक उर्वरकों का उपयोग बढ़ा, परंतु उस समय की आवश्यकता के अनुसार, आज यह अनुपात घटकर 0.5 से भी कम रह गया है। जिससे मिट्टी की उर्वरता कम हो गई है। इतना ही नहीं, भूमि, वायु और जल प्रदूषित हो गए हैं और विभिन्न बीमारियों का प्रकोप भी बढ़ गया है।
इस प्रकार की विभिन्न समस्याओं के समाधान के लिए प्राकृतिक कृषि पर जोर देते हुए राज्यपाल ने कहा कि जैविक कृषि के विकल्प के रूप में रासायनिक कृषि का विकल्प दिया गया, लेकिन इससे मेहनत और लागत में कोई कमी नहीं आती है, बल्कि उपज अचानक घट जाती है। इतना ही नहीं, अंततः यह पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचाता है।
उन्होंने कहा कि जिस तरह से जंगल के पेड़ों को प्राकृतिक रूप से पोषण मिलता है, वे बिना किसी उर्वरक के अपने आप फल देने लगते हैं। प्राकृतिक खेती में भी जैविक पदार्थ और ठोस कार्बनिक पदार्थ पर आधारित प्राकृतिक तरीकों से खेती तब सस्ती हो जाती है, जब किसानों की लागत शून्य हो जाती है।
राज्यपाल ने यूनेस्को की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि यदि आज रासायनिक उर्वरकों का उपयोग कम नहीं किया गया तो अगले 40-50 वर्षों में ग्लोबल वार्मिंग की समस्या के कारण भूमि पूरी तरह से बंजर हो जायेगी। इसके अलावा, विदेशों से आयातित यूरिया और अन्य रासायनिक उर्वरकों से भी देश की विदेशी मुद्रा खर्च होती है। जबकि प्राकृतिक खेती से मिट्टी के पोषक तत्व भी मिट्टी में बरकरार रहेंगे और वर्षा का पानी भी मिट्टी में गिरने से मिट्टी का जल स्तर भी बढ़ेगा।
उन्होंने कहा कि गाय के एक ग्राम गोबर में 300 करोड़ बैक्टीरिया होते हैं। ऐसे गाय के गोबर और गोमूत्र पर आधारित प्राकृतिक खेती से पहले वर्ष से ही भरपूर उत्पादन प्राप्त होता है। इतना ही नहीं, खर्चों को शून्य करके प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र भाई मोदी का किसानों की आय दोगुनी करने का सपना भी पूरा किया जायेगा। इसके लिए उन्होंने केंचुआ आधारित प्राकृतिक खाद बनाने की प्रक्रिया, जीवामृत, ठोस जीवामृत, आवरण के बारे में भी विस्तार से बताया।
राज्यपाल ने राज्य में जैविक खेती अपनाने वाले किसानों की संख्या में वृद्धि की जानकारी देते हुए कहा कि पिछले चार वर्षों के दौरान राज्य में 7.13 लाख किसानों ने जैविक खेती को अपनाया है, जबकि मात्र पिछले तीन महीनों में 10.39 लाख किसानों को प्रशिक्षित किया गया है।  उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने आजादी के 75 वर्ष के अवसर पर आयोजित किसान सम्मेलन में देश की प्रत्येक ग्राम पंचायत के कम से कम 75 किसानों से जैविक खेती अपनाने का आह्वान किया। नतीजा, आज गुजरात की 5233 ग्राम पंचायतों में 75 या उससे अधिक किसान जैविक खेती करते हैं। जिसमें अगले एक महीने में 3679 और पंचायतें जुड़ने की संभावना है।
राज्यपाल ने कहा कि यह एक सामूहिक प्रयास है। वहीं उन्होंने विभिन्न मीडिया प्रतिनिधियों से अपील की कि वे पुनरुद्धार के इस कार्य से जुड़कर राज्य के किसानों के साथ-साथ आम नागरिकों के बीच प्राकृतिक खेती के बारे में जागरूकता फैलायें।
इस कार्यक्रम में राज्यपाल के प्रमुख सचिव राजेश मांजू, मुख्यमंत्री की सचिव सुश्री अवंतिका सिंह, सूचना निदेशक धीरज पारेख, आत्मा परियोजना के विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी दिनेश पटेल तथा विभिन्न प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एवं रेडियो तथा सरकारी माध्यमों के संपादक एवं प्रतिनिधि इस कार्यक्रम में मौजूद थे। जबकि बड़ी संख्या में विभिन्न जिलों से पत्रकार भी इस वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से जुड़े थे।

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