आदिवासी विश्व दिवस पर विशेष लेख :- जिग्नेश सोलंकी द्वारा
वलसाड जिला में आदिवासी महिलाएं पशुपालन में अग्रणी:-
धोधडकुवा की डेयरी में प्रति वर्ष 57600 लीटर दूध भरकर 19.61 लाख रुपये की आय प्राप्त कर जिला में प्रथम स्थान हासिल किया:-
भारतीबेन का कहना है कि पशुपालन के व्यवसाय में की गई मेहनत व्यर्थ नहीं जाती, खर्च के बाद दो पैसे की बचत जरूर होती है:-
गौ माता की सुविधा के लिए गौशाला में पंखे लगवाए गए हैं, फिसलने से बचाने के लिए चादरें बिछाई गईं हैं, प्रत्येक गाय के लिए अलग-अलग पानी की नांद भी बनाई गईं है:-
गर्मियों में गायों को दिन में पांच बार और अब तीन बार नहलाया जाता है, गाय के गोबर और गोमूत्र से खेती भी समृद्ध होती है:-
स्टार मीडिया न्यूज,
वलसाड। मात्र 8 वीं कक्षा तक पढ़ी वलसाड जिला के कपराडा तालुका के धोधडकुवा गांव की आदिवासी महिला पशुपालन व्यवसाय के माध्यम से डेयरी में प्रति माह 160 से 170 लीटर दूध भरकर प्रति माह 1 लाख 63 हजार रुपये की कमाई कर रहीं हैं। प्रति वर्ष 57600 लीटर दूध भरकर 19,61,121 रूपये की आय के साथ उन्होंने जिला में पहला नंबर हासिल किया है। आज विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर वह जिले की अन्य महिलाओं के लिए भी एक प्रेरणास्रोत बन गयी हैं।
एक समय था जब पशुपालन को गौण पेशा माना जाता था। परंतु अब स्थिति बदल गई है, दूध की बढ़ती कीमतों के कारण घर-आधारित पशुपालन व्यवसाय प्रति माह लाखों रुपये की आय का स्रोत बन गया है। वलसाड जिला के गांवों में लोग धीरे-धीरे पशुपालन से दूर हो रहे हैं और कंपनियों में काम कर रहे हैं। परंतु वहीं कपराडा के धोधडकुवा गांव के निशाण फणिया में रहने वाली 50 वर्षीय आदिवासी महिला भारतीबेन रमनभाई पटेल ने आज के महंगाई के दौर में बहुत से लोगों के लिए रोजगार की एक नई मिसाल कायम की है।
अपनी सफलता के पीछे के संघर्ष के बारे में भारतीबेन कहती हैं, ”अबोल जीव से मुझे पहले से ही लगाव था, शादी के बाद पति रमनभाई के साथ पशुपालन व्यवसाय में मेरी रुचि बढ़ी लेकिन उस समय गरीबी के कारण हमारे पास गाय खरीदने तक के पैसे नहीं थे।” तो दूध मंडली से 40 हजार रुपये का कर्ज लेकर उन्होंने एक गाय खरीदी और कदम दर कदम पशुपालन व्यवसाय में उतर गए। धीरे-धीरे एक से दो व तीन गाय हो गईं और आज मेरे पास कुल 13 गायें हैं। जिसमें 10 होस्टेन, 2 जर्सी और 1 गीर गाय है। पशुपालन व्यवसाय में बहुत अधिक मेहनत की आवश्यकता होती है। मैं और मेरे पति सुबह 5 बजे उठकर गौ माता की सेवा में लग जाते हैं। चूँकि हमारे पूरे परिवार का जीवन उन पर निर्भर है, इसलिए उनका स्वास्थ्य और स्वच्छता हमारी पहली प्राथमिकता है।
13 गायों की देखभाल के लिए पक्का तबेला का निर्माण किया गया है। गाय के पैर नहीं फिसले इसके लिए नीचे रबर की शीट भी बिछाई गई है। स्थल पर ही चारा-पानी उपलब्ध कराने के लिए अलग से नाद का निर्माण कराया गया है। वर्तमान समय में मानसून के दौरान भी सभी गायों को दिन में 3 बार नहलाया जाता है। खासकर गर्मियों में तो दिन में पांच बार नहलाना पड़ता है। इसके अलावा गौ माता को गर्मी न लगे इसके लिए पंखे भी लगाए गए हैं। सभी को यही लगता है कि पशुपालन के व्यवसाय में बहुत अधिक मेहनत लगती है, ये बात सच है, परंतु हकीकत में देखें तो इस व्यवसाय में की गई मेहनत व्यर्थ नहीं जाती है। हम जितना अधिक काम करते हैं, उतनी अधिक आय अर्जित करते हैं और हम उससे कुछ पैसे भी बचा सकते हैं। इस व्यवसाय की आय से बेटी और बेटे की शादी की और पक्का आरसीसी घर भी बनाया। यूं तो पशुपालन से भारतीबेन आर्थिक रूप से मजबूत हुई है। परंतु इनका द्रष्टांत अन्य महिलाओं के लिए भी प्रेरणारूप है।
गायों को नहलाने के लिए पानी मिलता रहे इसके लिए जनरेटर व चारे के लिए कटर मशीन खरीदा:-
प्राइवेट नौकरी छोड़कर पशुपालन के व्यवसाय से जुड़े भारतीबेन के पुत्र केतन बताते हैं कि मम्मी, पापा, मैं और मेरी पत्नी मीनाक्षी, हम चारों गाय माता का नियमित चारा-पानी, टीकाकरण और साफ-सफाई का समय कभी चूकते नहीं हैं। गौमाता के खुराक के लिए हर महीने हम लगभग 60 किलो गेहूं की भूसी, मक्का और तुवर की चूनी और कपास पापड़ी के साथ-साथ 5 टन सूखा-हरा चारा, गन्ना और पुरतिया खरीदते हैं। इस प्रकार मिश्रित भोजन से अच्छा दूध मिलता है। गन्ना पूरा नहीं डाला जा सकता, इसलिए गन्ने और चारे को टुकड़ों में काटने के लिए कटर मशीन भी खरीदी गई है। गाय को नहलाने के लिए पर्याप्त पानी मिले, इसके लिए बैंक से लोन लेकर जेनरेटर खरीदा गया है। इसलिए अगर लाइट चली भी जाए तो भी 24 घंटे पानी उपलब्ध रहेगा। इसके अलावा एक ट्रैक्टर भी खरीदा गया है। गाय के गोबर और गोमूत्र को सीधे खेत में जाने की व्यवस्था की गई है जिससे कृषि भी समृद्ध हुई है।