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सरदार वल्लभभाई के भाषण से प्रेरित होकर स्वतंत्रता सेनानी शंकरभाई पंड्या 20 साल की उम्र में स्वतंत्रता संग्राम में हुए शामिल, 7 महीने बिताए जेल में

स्वतंत्रता दिवस में कुछ ही दिन शेष है पर वहीं वलसाड के एक स्वतंत्रता सेनानी की पत्नी ने स्वतंत्रता संग्राम की ज्वलंत तस्वीर पेश की:- 
 शंकरभाई की पत्नी इंदिराबेन को राज्य सरकार द्वारा आज भी 7 हजार रुपये महीने पेंशन का भुगतान किया जा रहा है:-
आजादी की लड़ाई के लिए निकलते जुलूस में मात्र मूंगफली और गुड़ खाकर दिन बिताया:- इंदिराबेन पंड्या 
गांधीजी के विचारों से प्रेरित होकर वह बच्चों को लालटेन की रोशनी में पढ़ाते थे और उन्हें स्वच्छता का पाठ भी पढ़ाते थे:-
विशेष रिपोर्ट: जिग्नेश सोलंकी
स्टार मीडिया न्यूज, 
 वलसाड। ”मैंने पूरे देश में घूमकर देखा है कि पूर्वजों ने उत्तर से आकर यहां ऐसे गांव बसाए हैं। वे तो वीर थे, पर हम कायर हो गये हैं। इसलिए तो पाँच हजार मील से आये अंग्रेज यहाँ हम पर शासन करते हैं। यदि हमें शासन करना है तो ऐसे बहादुर प्रजा पैदा करना पड़ेगा और बच्चों को शिक्षित करना हमारा काम है। गांव-गांव घूमकर मैं बराबर समझ गया हूं जिस सरकार को लोगों की परवाह नहीं है, उससे अपील करने का कोई मतलब नहीं है। सरकार (अंग्रेजों) के खिलाफ 35 करोड़ को लड़ने से क्या होगा ? आंख भर दिखायें तो उन लोगों को यहां से जाना पड़ेगा, लेकिन कब ? जब ताकत हो..उपरोक्त शब्द दिनांक 4 मई 1934 को हमारे देश के लौह पुरुष और अखंड भारत के शिल्पी कहे जाने वाले श्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने बोरसद के गंभीरा गांव में एक रात्रि सभा के दौरान लोगों को संबोधित किया था।
  इन शब्दों ने देश में अंग्रेजों की गुलामी से आजादी पाने के लिए संघर्ष कर रहे नव युवकों को ताकत देने का काम किया और कई युवा जोश के साथ स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हुए और अंग्रेजों के जुल्म सहे और कारावास की सजा भी भुगती। उनमें से एक, जो वलसाड के अब्रामा के धारानगर में रहने वाले और मूल रूप से बोरसाद के गंभीरा गांव के मूल निवासी स्वर्गीय शंकरभाई मणिशंकर पंड्या थे। 20 साल की उम्र में आजादी की लड़ाई लड़ने वाले शंकरभाई के स्वतंत्रता संग्राम को याद कर आज भी उनकी 95 वर्षीय पत्नी इंदिराबेन की आंखें नम हो जाती हैं। स्वतंत्रता सेना के शंकरभाई पंड्या आज जीवित नहीं हैं लेकिन उनकी देशभक्ति और आत्म-बलिदान की भावना के लिए उनकी पत्नी इंदिराबेन को गुजरात सरकार 7 हजार की पेंशन देकर जीवनभर उनका कर्ज चुका रही है।
 अंग्रेजों के अत्याचार और गुलामी से आजादी कैसे मिली, यह महान आजादी हमें तब मिली जब कई लोगों ने अपनी जान दे दी। वहीं आजादी की लड़ाई में अपना सर्वस्व समर्पण करने वाले स्वतंत्र सेनानियों के प्रति हमारी भावनाओं और प्रेम को व्यक्त करने का आजादी का पर्व स्वतंत्रता दिवस आगामी 15 अगस्त आ रहा है। वहीं इस बार राज्य स्तरीय समारोह वलसाड में होने से जिले के लोग इस त्योहार को मनाने के लिए उत्साहित हैं। इस राष्ट्रीय दिवस के मौके पर स्वतंत्रता सेनानी शंकरभाई पंड्या की धर्मपत्नी ने देश की आजादी लड़ाई की यादें ताजा करते हुए कहा कि 12-13 साल की उम्र में मेरी शादी शंकर पंड्या से हुई थी। तब उनकी उम्र 25 साल थी। अगर हम 1934-35 के समय की बात करें तो उस समय गांधीजी और सरदार वल्लभभाई तथा अन्य क्रांतिकारी देश की आजादी के लिए फिर से गांव-गांव में जनभावना पैदा कर रहे थे। मुझे ठीक-ठीक वही याद है 4 मई 1934 को हमारे गांव गंभीरा में सरदार वल्लभभाई की रात्रि सभा हुई और मेरे पति वहां गए और सरदार का भाषण सुनकर उन्हें स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने की प्रेरणा मिली।
वर्ष 1942 में जब अंग्रेजों भारत छोड़ो आन्दोलन हुआ तो मेरे पति भी पूरे जोश के साथ आन्दोलन में शामिल हो गये और अंग्रेजों की मार खाकर उन्हें वड़ोदरा की सेंट्रल जेल में कैद कर दिया गया। 1 महीने बाद जब वे जेल से रिहा हुए तो आंदोलन में सक्रिय रहने के कारण अंग्रेजों ने उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया और बोरसद के पास भादरनी की जेल भेज दिया, जहां उन्हें 6 महीने तक कैद में रखा गया। कुल 7 महीने की कैद के दौरान अंग्रेज़ों ने मुझे केवल एक बार मिलने की इजाज़त दी और उस समय अंग्रेज़ों की कड़ी चेकिंग होती थी। कुछ भी साथ ले जाने की मनाही थी, मैं खाली हाथ मिलने गई। मेरे पति ने मुझे एक शब्द भी नहीं बताया कि जेल में अंग्रेज़ों द्वारा क्या किया जा रहा था। उनमें गजब की सहनशक्ति थी।
सरदार वल्लभ भाई कहते थे, महिलाओं को भी आज़ादी की लड़ाई में भागीदार बनाओ। स्त्री-पुरुष के बीच भेदभाव उचित नहीं है। उनके आह्वान पर मैं आजादी की लड़ाई के लिए जनजागरूकता फैलाने के लिए गांव-गांव जुलूसों में भाग लेती थी और केवल मूंगफली और गुड़ खाकर दिन गुजारा। आख़िरकार 15 अगस्त 1947 को देश आज़ाद होने के बाद भी उनकी देश सेवा निरंतर जारी रही उन्होंने 17 मई 2005 को वलसाड में देहत्याग कर ली।
स्वतंत्रता सेनानी शंकरभाई के बेटे रमेशभाई ने बताया कि उनके पिता महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर पिछड़े इलाकों में जाकर गरीबों के बच्चों को नहलाते थे और साथ ही साफ-सफाई कर स्वच्छता का पाठ पढ़ाते थे। गांव के स्कूल में 1972 तक प्रिंसिपल थे, इसलिए वे रात में भी लालटेन लेकर पढ़ाते थे। चूंकि गरीबों के बच्चों के पास पहनने के लिए कपड़े नहीं होते थे, इसलिए वे जीवन भर खादी के कपड़े ही पहनते थे और फुल पैंट की जगह चड्डी पहनते थे। उनके संतानों में दो भाई और 3 बहनें, कुल मिलाकर 5 संतान हैं। जिनमें से मेरे बड़े भाई प्रफुल्लभाई जीवित नहीं हैं।
और मेरे पिता ने मोदी जी से कहा, लड़कों के बस्ते का वजन कम करो:
वर्ष 2005 में जब गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री और अब देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्रभाई मोदी वलसाड आये तो उनकी मुलाकात स्वतंत्रता सेनानी शंकरभाई पंड्या से हुई। उस पल को याद करते हुए उनके बेटे रमेशभाई कहते हैं कि मोदी जी ने उनके पिता से पूछा, ”अंकल, क्या आपको देश के लिए कुछ कहना है ?” तब उनके पिता ने कहा, ”लड़के बस्ते का बोझ उठाकर झुक गए हैं.” उनका वजन कम करें। इससे प्रेरणा पाकर गुजरात में तनाव मुक्त शिक्षा के लिए सकारात्मक प्रयास किये गये। जब पिता जी जीवित थे, तब देश के पहले उप प्रधान मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल, पूर्व प्रधानमंत्री श्री मोरारजी देसाई और अन्य नेताओं ने उनसे मुलाकात की और उनकी देशभक्ति की सराहना की।

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