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विश्व आदिवासी दिवस से पहले पढ़िये एक आदिवासी युवा की प्रेरणादायी विकास गाथा, जिसे कई अवार्ड से किया गया है सम्मानित

दुर्गम गांव को एक दशक में समृद्ध बनाने वाले आदिवासी ग्राम शिल्पी निलमभाई पटेल युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत बन गए:-
 वर्ष 2009 में खोबा गांव में आने वाला व्यक्ति, अगर वह वर्तमान में खोबा गांव आएगा तो उसे यह जरूर लगेगा कि वह कहीं भूला तो नहीं है, यहां तो इतनी सारी सुविधाएं उपलब्ध हैं:-
ग्रामीणों को पलायन से रोकने के लिए उन्होंने ढलान वाली भूमि पर पत्थर के तटबंध बनाने की तरकीब अपनाई और लोगों को कृषि में आत्मनिर्भर बनाया:-
एमए व एम.फिल की ऊंची डिग्री हासिल करने वाले नीलम पटेल को लाखों के पैकेज वाली नौकरी मिल सकती थी, लेकिन उन्होंने अपना जीवन आदिवासियों के विकास के लिए समर्पित कर दिया:-
विशेष लेख:- जिग्नेश सोलंकी
स्टार मीडिया न्यूज, 
 वलसाड। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र भाई मोदी अक्सर कहते हैं कि हमारा देश सबसे युवा देश है। युवाओं में अपार शक्ति होती है। हम ऐसी कहावतें सुनते हैं कि एक युवा यह कर सकता है, एक शिक्षित व्यक्ति सौ लोगों को पढ़ा सकता है, लेकिन वास्तव में वलसाड तालुका के गुंदलाव गांव के मूल निवासी और धरमपुर के खोबा गांव को एक विकसित गांव के रूप में पहचान देने वाले निलमभाई पटेल ने एक सार्थक शुरुआत कर युवाओं को एक नई दिशा दी है।
गुजरात विद्यापीठ से एम.ए. और एम.फिल की ऊंची डिग्री के साथ निलमभाई किसी सरकारी विभाग में एक अधिकारी के रूप में या किसी कॉर्पोरेट कंपनी में लाखों रुपये के पैकेज पर नौकरी कर सकते थे। लेकिन कुछ अलग करने की भावना और गांधीजी के विचारों से प्रेरित होकर ग्राम शिल्पी बने और धरमपुर तालुका के एक दूरदराज इलाके के खोबा गांव में सेवा कार्य किया, जो आज तारीख में चमक रहा है। उन्होंने महज 10 साल में खोबा गांव की कायापलट कर दी। तो आइए विश्व आदिवासी दिवस की पूर्व संध्या पर जानते हैं कि कैसे एक आदिवासी युवक ने खोबा गांव और उसके आसपास के गांवों में रहने वाले हजारों आदिवासियों के जीवन को समृद्ध बनाया, और सफलता के शिखर तक पहुंचने के लिए उन्होंने कितनी बाधाओं का सामना किया, इसकी कहानी उन्हीं की जुबानी:——
जब मैं पहली बार इस गांव में आया तो गांव के लोगों ने सबसे पहले सोचा कि हमारे गांव में क्या सुधार होना चाहिए। कुछ लोगों ने तो यह भी कहा कि इतना पढ़ने-लिखने के बाद क्या मुझे भी बावा जैसा जीवन जीना चाहिए, लेकिन मैंने किसी की बातों की परवाह नहीं की और अपना सेवा कार्य जारी रखा। शुरुआत ग्राम शिल्पी योजना से की। 15 जुलाई 2009 को गांव में शिक्षा की नींव रखने के लिए लोक मंगलम चैरिटेबल ट्रस्ट का गठन किया गया और लोक मंगलम विद्यापीठ की स्थापना की, एक अच्छी लाइब्रेरी भी बनाई, फिर कृषि कार्य शुरू किए, फल लगाना, पौधे लगाना, सब्जियां उगाना, जल, जंगल खोबा गांव के लोगों के लिए, मिट्टी संरक्षण के लिए पेड़ लगाना, झील-कुआं खोदना, चेक बांध निर्माण, बोरवेल-कुआं पुनर्भरण कार्य आदि में लोगों को शामिल किया गया, ताकि वे गांव में रहें और आर्थिक रूप से समृद्धि रहें।
इस कार्य को करने में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा क्योंकि यहां की जमीन खेती के लिए ढलान वाली है और जब बारिश होती है तो मिट्टी कट जाती है और मिट्टी नीचे गिर जाती है, इसलिए ढलान वाली जमीन पर पत्थर का तटबंध बनाने की तरकीब आजमाई, ताकि जब बारिश आए और मिट्टी का क्षरण हो तो मिट्टी नीचे आकर पत्थर के तटबंध पर टिक जाये, और कुछ ही दिनों में यह ढलानदार जमीन समतल हो गई, और अब वहां सफल खेती होती है। गाँव में पहले से ही पानी की समस्या थी, इसलिए चेक डैम बनाने से तलछट का पानी अब इकट्ठा हो जाता है, जिसका उपयोग ग्रामीण साल भर कर सकते हैं। अब गांव को साल भर पर्याप्त पानी मिलने लगा है। खोबा गांव में स्वास्थ्य सुविधा हेतु अस्पताल में मरीजों को केवल एक या दो रुपये के मामूली शुल्क पर दवा और उपचार प्रदान किया जाता है। अंधेरे में रहने वाले ग्रामीणों के जीवन में रोशनी लाने हेतु गांव में बिजली पहुंचाने में सफलता हासिल की। सेवा के ये सभी कार्य मित्रों के सहयोग से आगे बढ़े हैं। विकास की दिशा में चलते हुए 1 एकड़ जमीन भी दान में मिली है, जहां गांव के सहयोग से नया घर बनाया गया है। इस घर की खासियत यह है कि इस घर के निर्माण में इस्तेमाल की गई लकड़ी गांव के हर घर से आई है।
साल 2009 से साल 2019 तक खोबा गांव का स्वरूप पूरी तरह से बदल चुका है, अगर कोई व्यक्ति 2009 में खोबा आया होगा और अब वह गांव में प्रवेश करता है, तो उसे यकीन नहीं होगा और वह सोचेगा कि कहीं भूल तो नहीं गया।  जहां लोग पीने के पानी से वंचित थे, आज वहां चौबीसों घंटे पीने का स्वच्छ पानी उपलब्ध है। जहां कभी लोग शिक्षा से वंचित थे, वहां आज बच्चे पुस्तकालय में पढ़ते नजर आते हैं, जहां कभी खाली जमीन पर खेती नहीं हो पाती थी, वहां के ग्रामीण आत्मनिर्भर हो गए हैं। सामाजिक कार्यों में अब कई लोग मेरे साथ जुड़ गए हैं। वर्षों के संघर्ष और कड़ी मेहनत से खोबा जेवड़ा खोबा गांव कई सुविधाओं से सुसज्जित होकर पूरे गांव को अपनी पहचान बनाने में सफल हुआ है।
गौरतलब है कि, यह सिर्फ दो साल की मेहनत नहीं है, बल्कि निलमभाई खुद को घिसकर दूसरों को जागरूक करने की कड़ी मेहनत का नतीजा है। वर्तमान में धरमपुर के 108 गांवों में फैले लोग उनके इस सेवा यज्ञ में स्वस्फूर्त रूप से शामिल हो रहे हैं।
कक्षा 9वीं से 12वीं तक 250 से अधिक छात्र निःशुल्क शिक्षा प्राप्त करते हैं:
शिक्षा क्षेत्र में प्रमुख योगदानकर्ता निलमभाई सरकारी सहायता के बिना सार्वजनिक भागीदारी से खोबा गांव में कुमार छात्रावास चलाते हैं। मानव छांयडो ट्रस्ट के ट्रस्टी के रूप में वह धरमपुर के केणवनी गांव में ज्ञान गंगोत्री विद्यालय और बामटी गांव में ज्ञान सरिता विद्यालय और खटाना गांव में ज्ञान सागर विद्यालय के प्रबंधन में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। हालाँकि ये तीन स्कूल गैर-अनुदान प्राप्त होने के बावजूद कक्षा 9वीं से 12वीं तक के 250 से अधिक विद्यार्थियों को निःशुल्क शिक्षा प्रदान की जाती है।
गांव में ही रोजगार सृजन हेतु विभिन्न गतिविधियां संचालित:
निलमभाई ने कई सहयोगियों की मदद से एम्बुलेंस सेवा, मोबाइल डिस्पेंसरी, नेत्र शिविर, चिकित्सा शिविर, स्वास्थ्य सहायता, युवा-महिला और बाल विकास-कल्याण गतिविधियाँ, किसानों के लिए टूल बैंक, जैविक खेती पर मार्गदर्शन, उर्वरक-बीज सहायता, फलों के पौधों का वितरण, सरकारी योजनाओं का प्रचार-प्रसार हेतु सूचना केंद्र, पशुपालन, महुडा वृक्ष के बीज से तेल निकालने की घाणी, छोटी चावल मिल और गृह उद्योग के माध्यम से घर-आंगन रोजगार पैदा करके आत्मनिर्भर होने की दिशा दी गई है। इसके अलावा नशामुक्ति, प्लास्टिक उन्मूलन, पॉक्सो एक्ट की जानकारी, आरटीई और आरटीआई के प्रति जागरूकता के लिए समय-समय पर कई शिविर और प्रदर्शनियां आयोजित की जाती हैं।
आदिवासी समाज के कल्याण के लिए कई पुरस्कार भी मिले:-
 आदिवासी सामाजिक कल्याण गतिविधियों के लिए सरकारी और निजी संगठनों की तरफ से निलमभाई को कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए हैं। जिसमें प्रमुख रूप से 15 अगस्त, 2014 को अहमदाबाद में गुजरात उच्च न्यायालय के न्यायाधीश रवि आर. त्रिपाठी के हाथों मिला जागृति जन अवार्ड, वर्ष 2016 में गुजरात के राज्यपाल ओ. पी. कोहली के हाथों मिला गांधी मित्र अवार्ड, 24 फरवरी 2017 को तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री विजय रूपानी के हाथों मिला धरती रत्न अवार्ड, 1-1-2018 को गुजरात विद्यापीठ द्वारा मिला महादेवभाई देसाई समाजसेवा पुरस्कार, 4 दिसंबर 2018 को दिल्ली में छत्तीसगढ़ के पूर्व राज्यपाल श्रीशेखर दत्त के हाथों मिला भारत ज्योति अवार्ड और 2020 में गांधीयन सोसायटी यूएसए द्वारा दिया गया सेवा पुरस्कार शामिल है।

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