वर्ष 1888 में धरासना में अंग्रेजों द्वारा स्थापित जेल में आज भी एक जेल है जिसमें सत्याग्रहियों को रखा जाता था:-
स्वतंत्रता संग्राम में धरासना नमक सत्याग्रह ने पूरी दुनिया को अहिंसक आंदोलन का महत्व समझाया:-
सत्याग्रह पर रिपोर्टिंग करने वाले अमेरिकी पत्रकार वेब मिलर लिखते हैं कि, 22 देशों में अपनी 18 साल की रिपोर्टिंग में मैंने धरासना जैसा भयावह दृश्य नहीं देखा:-
लेख:- जिग्नेश सोलंकी
स्टार मीडिया न्यूज,
वलसाड। वर्ष 1930 में भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान नमक पर लगाए गए कर के खिलाफ वलसाड तालुका के धरासना गांव में एक सत्याग्रह आयोजित किया गया था। जिसे इतिहास के पन्नों में ब्रिटिश क्रूरता और भारत के अहिंसक आंदोलन के नाम से जाना जाता है। आगामी 15 अगस्त को जब वलसाड में राज्य स्तरीय 77वां स्वतंत्रता दिवस मनाया जा रहा है, तो धरासना सत्याग्रह में शहीद हुए स्वतंत्रता सेनानियों और अपना रक्त बलिदान करने वाले स्वतंत्रता सेनानियों की वीरता और उनके शौर्य को नतमस्तक होकर सलामी देना लाजमी है। आज भी धरासना गांव का नमक स्मारक व वर्ष 1888 में अंग्रेजों ने धरासना में स्थापित थाना हजारों सत्याग्रहियों के संघर्ष की कहानी कहता है।
वलसाड जिला में स्वतंत्रता दिवस का राज्य स्तरीय समारोह मनाया जा रहा है। वहीं हमें मिली इस महान आजादी के पीछे देश के हजारों-लाखों वीर लड़ाकों के त्याग, बलिदान और संघर्ष की वीरगाथा है। देश की आजादी के लिए गांधीजी के नेतृत्व में हुए कई बड़े सत्याग्रहों में से एक था वलसाड के धरासणा गांव का नमक सत्याग्रह। धरासना सत्याग्रह का याद आना स्वाभाविक है। धरसना गांव के उपसरपंच विजयभाई पटेल इस ऐतिहासिक सत्याग्रह के बारे में बताते हैं कि, जब यह सत्याग्रह हुआ था, तब मेरे पिता भूलाभाई पटेल 13 साल के थे। उनसे और गांव के बुजुर्गों से पता चला कि जब गांधीजी 79 सत्याग्रहियों के साथ दांडी यात्रा के लिए निकले तो अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और जिम्मेदारी सरोजिनी नायडू को सौंप दी। जब वे धरासना आये तो अंग्रेजों ने सत्याग्रहियों पर अमानवीय व्यवहार किया था। सत्याग्रहियों के ऊपर घोड़े दौड़ाए गए और उन्हें लोहे की मूठ वाली लाठियों से पीटा गया। अमेरिकी पत्रकार वेब मिलर ने इस अहिंसक आंदोलन के बारे में रिपोर्ट की और उनकी रिपोर्ट दुनिया के 1350 अखबारों में प्रकाशित हुई और पूरी दुनिया ने धरासना सत्याग्रह पर ध्यान दिया।
वेब मिलर ने लिखा कि, 22 देशों में अपनी 18 साल की रिपोर्टिंग में मैंने धरासना जैसा भयानक दृश्य नहीं देखा था। मैं उस हिंसा को देखकर सन्न हो गया था। सत्याग्रहियों ने बिना किसी प्रतिरोध के चुपचाप मार खाते रहे। अंग्रेजों की क्रूरता के दृश्य बहुत दर्दनाक थे। वेब मिलर की धरासना सत्याग्रह की रिपोर्टिंग ने दुनिया को पहली बार अहिंसक आंदोलन से अवगत कराया।
अंग्रेजों के समय में धरसाना गाँव नमक उत्पादन का एक महत्वपूर्ण केंद्र था और यहाँ एक थाना बनाया गया था। नमक सत्याग्रह के समय अंग्रेजों ने सत्याग्रहियों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया था। वह जेल आज भी धरासना गांव में सॉल्ट आफिस तरीके जाना जाने वाला कार्यालय में देखा जा सकता है। आज भी जब हम सत्याग्रहियों के पास जाते हैं तो उनकी वेदना और पीड़ा को महसूस करते हैं।
1978 में देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री मोरारजी देसाई के हाथों धरासना गांव में नमक सत्याग्रह की स्मृति में स्मारक बनवाया गया था। जिसके जीर्णोद्धार का कार्य फिलहाल चल रहा है। वलसाड में राज्य स्तरीय स्वतंत्रता दिवस मनाया जा रहा है। तब वहीं धरासना गांव में हर कोई गर्व महसूस कर रहा है।