गणेश सर्वप्रथम पूजनीय आदि देव हैं। वे विद्या-बुद्धि के प्रदाता व अज्ञान का अंधकार दूर करने वाले हैं। आज के समय में बुद्धिविधाता गणेश की कृपा की विशेष जरूरत है, क्योंकि इंसान की बुद्धि भ्रष्ट हो चली है। उसका विवेक नष्ट होता चला जा रहा है, जो विध्वंस और विनाश का कारण बनता जा रहा है। मति भ्रम की वजह से हिंसा, अनाचार और युद्ध हो रहे हैं। बड़े-बड़े राजनेता भी रचनात्मकता की बजाय संघर्ष को हवा दे रहे हैं। मानवता कराह रही है। ऐसे कठिन समय पर श्री गणेश जी हर मानव को सदबुद्धि और विवेक दें, यही कामना है। श्री गणेश जी सभी गुणों के अधीश होने से गणाधीश है। उनके अनेक नाम है, जैसे- विनायक, वक्रतुंड, महाकाय, सुमुख, एकदंत, कपिल, गजकर्णक, लंबोदर, हेरम्ब, बिकट, महाबल, विघ्ननाशक, गणाधिप, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचंद्र, गजानन, वे महेश पुत्र और गौरीनंदन हैं। विद्यारंभ करते समय पहले स्लेटपट्टी पर ‘श्री गणेशाय नम:’ लिखवाया जाता था। पुरानी वर्णमाला में गणेश का ‘ग’ रहा करता था। आद्य देवता होने से संत ज्ञानेश्वर ने अपनी कृति ‘ज्ञानेश्वरी’ की शुरुआत ‘ओम नमोजी आद्या’ से की। किसी भी काम की शुरुआत श्रीगणेश से की जाती है। वे विघ्नहर्ता हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस के मंगलाचरण का प्रारंभ करते हुए लिखा ‘जो सुमिरत सिधि होय, गणनायक करिबर बदन, करहु अनुग्रह सोई, बुद्धिराशि शुभ गुन सदन’। महाराष्ट्र में जनजागृति व संगठन के उद्देश्य से सन 1893 में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने सार्वजनिक गणेशोत्सव की शुरुआत की। इसने समाज प्रबोधन करने वाले भाषणों, कीर्तन, भजन स्पर्धा, नागरिक वाद-विवाद व राष्ट्रचिंतन को मंच प्रदान किया। गणेशोत्सव ने सामाजिक चेतना निर्माण की और राष्ट्रभक्ति व स्वाधीनता आंदोलन का महत्वपूर्ण अंग बना। लोकमान्य तिलक गणेशोत्सव के दौरान अनंत चतुर्दशी को पुणे में जो भाषण देते थे, उसे सुनने के लिए भारी जनसमुदाय एकत्र होता था और मुंबई से भी बड़ी तादाद में लोग वहां पहुंचते थे।
विशाल मस्तिष्क वाले गणपति सुबुद्धि, कला-कौशल के अधिष्ठाता हैं, वे रिद्धि-सिद्धि के स्वामी हैं तथा शुभ-लाभ उनकी संतानें हैं। वेदव्यास ने जब महाभारत की रचना की तो उन्हें शीघ्र लेखन की आवश्यकता पड़ी थी। उन्होंने गणेश जी से कहा कि मेरे हर श्लोक को समझकर लिखना। जब तक गणेश एक श्लोक लिखते, तब तक वेदव्यास मन में दूसरा श्लोक रच लेते थे। गणपति की अनेक कथाएँ हैं। हर शुभ कार्य का प्रारंभ उन्हीं की पूजा से होता है।