बिहार विधानसभा के मुहाने पर सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला राज्य की राजनीति के केंद्र में आ गया है। पिछले चुनाव में इसी मुद्दे पर संघ प्रमुख के एक बयान ने राज्य की चुनावी हवा बदल दी थी। जाहिर है दिल्ली में बुरी तरह हारने के बाद राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की पेशानी पर फिर बल पड़ गए हैं। उत्तराखंड सरकार की ओर से दायर एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने बीते शुक्रवार को नौकरी और पदोन्नति में आरक्षण पर फैसला सुनाते हुए कहा कि सरकारी नौकरियों में आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है। राज्यों को कोटा प्रदान करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है और राज्यों को सार्वजनिक सेवा में कुछ समुदायों के प्रतिनिधित्व में असंतुलन दिखाए बिना ऐसे प्रावधान करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। इस फ़ैसले के बाद राजग के दो घटक दल जनता दल यूनाइटेड और लोक जनशक्ति इस फ़ैसले के खिलाफ केंद्र सरकार से जल्द से जल्द पुनर्विचार याचिका दायर करने का दबाव बनाने में जुट गये हैं। उनका मानना है कि यह फैसला आरक्षण की अवधारणा के खिलाफ है। दूसरी तरफ राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव ने इस मामले को लपकने में देर नहीं लगाई और एक तरह से ऐलान करते हुए कहा ट्वीट किया, ‘भाजपा और राजग सरकारें आरक्षण खत्म करने पर क्यों तुली हुई है? उत्तराखंड की भाजपा सरकार ने आरक्षण खत्म करने लिए सुप्रीम कोर्ट में केस लड़ा। आरक्षण प्राप्त करने वाले दलित-पिछड़े और आदिवासी हिंदू नहीं है क्या? भाजपा इन वंचित हिंदुओं का आरक्षण क्यों छीनना चाहती है। हम केंद्र की एनडीए सरकार को चुनौती देते है कि तुरंत सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर करें या फिर आरक्षण को मूल अधिकार बनाने के लिए मौजूदा संसद सत्र में संविधान में संशोधन करें। तेजस्वी ने इस बहाने रामविलास पासवान, नीतीश कुमार, रामदास अठावले और अनुप्रिया पटेल पर सीधा निशाना साधा है। राजग विशेषकर भाजपा इस मुद्दे पर फिर उलझन में है। क्योंकि 2015 में आरक्षण पर संघ प्रमुख मोहन भागवत के एक बयान पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के सभी नेता बिहार में सफाई देते रहे लेकिन विधानसभा चुनाव में लालू प्रसाद यादव ने इसे खूब उछाला और जमकर वोट बटोरे थे। दूसरी उलझन सुप्रीम कोर्ट के एक और फैसले ने बढ़ा दी है जिसमें केंद्र सरकार को राहत देते हुए अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम में सरकार के 2018 के संशोधन को बरकरार रखा गया है। जिसमें दलित उत्पीड़न कानून के तहत शिकायत किए जाने पर प्रारंभिक जांच जरूरी नहीं है। एफआईआर दर्ज करने से पहले वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों या नियुक्ति प्राधिकरण से अनुमति लेना जरूरी नहीं है। ऐसे मामलों में अग्रिम जमानत का प्रावधान नहीं है। न्यायालय असाधारण परिस्थितियों में एफआईआर को रद्द कर सकते हैं। भले इससे एक वर्ग राहत महसूस करे लेकिन उच्च वर्ण के लोग इस फैसले पर राजग से बिदक सकते हैं।
दुखिया मुखिया का दर्द
राजगढ़ थप्पड़ कांड के बाद मध्य प्रदेश पुलिस के नए मुखिया को लेकर खाकी गलियारों में अजब सी व्याकुलता पसरी हुई है। मुख्यमंत्री कमलनाथ इस मुद्दे पर तीन वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों वर्तमान पुलिस महानिदेशक, जेल महानिदेशक संजय चौधरी और विशेष पुलिस महानिदेशक डॉ. मैथिलीशरण गुप्त से चर्चा कर चुके हैं। खबर है कि एसआईटी मुखिया राजेंद्र कुमार के नाम की चर्चा ज्यादा है। फ़िलहाल मुख्यमंत्री ने वर्तमान डीजीपी विजय कुमार सिंह से काम देखते रहने को कहा है। इस पद के लिए दावेदारों में मैथिलीशरण गुप्त, अशोक दोहरे, केएन तिवारी, शैलेन्द्र श्रीवास्तव के अलावा कई अन्य नाम हैं लेकिन, सहमति राजेन्द्र कुमार के नाम पर बनती दिख रही है। 1985 बैच के आईपीएस अफसर राजेन्द्र कुमार हनी ट्रैप मामले के लिए गठित एसआईटी के प्रमुख भी हैं। इससे पहले डीजीपी विजय कुमार सिंह को कांग्रेस सरकार ने जनवरी, 2019 में जिम्मेदारी सौंपी थी मगर सरकार डीजीपी के काम से संतुष्ट नहीं चल रही थी। इसकी जो तीन प्रमुख वजह हैं- उनमें राजगढ़ कलेक्टर निधि निवेदिता की तरफ से थप्पड़ कांड, हनी ट्रैप केस की जांच के लिए एसआईटी चीफ नियुक्ति को लेकर सरकार को भरोसे में न लेना और पुलिस कमिश्नर प्रणाली को लेकर चल रही खींचतान है। चूँकि राजेंद्र कुमार की पुलिस मुखिया पद पर ताजपोशी लगभग तय है तब विशेष पुलिस महानिदेशक मैथिलीशरण गुप्त का दर्द छलक उठा। उन्होंने अपनी भावनाएं सोशल मीडिया पर कुछ इस तरह व्यक्त कीं, ‘मैं इतनी क्षमता रखता हूं कि इस व्यवस्था में आमूलचूल बदलाव ला सकता हूं। मैं अपने आप को पीड़ित नहीं दिखाना चाहता, सरकार को स्वीकार करना चाहिए कि मैं राज्य में पुलिसिंग का नेतृत्व करने की क्षमता रखता हूं। मैं खुद को व्यथित या परेशान के रूप में प्रोजेक्ट नहीं करना चाहता। यह सरकार को महसूस करना चाहिए कि मैं राज्य में पुलिसिंग को चालू रखने की क्षमता रखता हूँ।‘ देखने वाली बात यह है कि गुप्ताजी की पोस्ट कमलनाथ पर क्या असर दिखाती है।
जवान परेशान
देशभक्ति की खुराक बाँटने की कड़ी में यह खबर केंद्र सरकार को मुंह चिढाने के लिए काफी है। केंद्र की मोदी सरकार ‘जवान-जवान’ करते हुए अब उन्हीं को सुविधाएं देने में नाकाम होने लगी है। सत्तारूढ़ दल ने सेना और जवानों को लेकर सबसे ज्यादा राजनीति की है। प्रधानसेवक किसी भी चुनावी रैली में जवानों का राग अलापने से नहीं चूकते। कोलकाता से प्रकाशित एक अंग्रेजी दैनिक के अनुसार सीमा पर तैनात रहने वाले सशस्त्र बल के करीब 90000 हजार कर्मियों को सरकार की तरफ से जनवरी और फरवरी के भत्तों का भुगतान नहीं किया गया है। भत्तों का भुगतान न करने का कारण सरकार ने फंड की कमी बताया है। उनके पास दो महीने का वेतन देने के लिए भी पैसे नहीं है। यह साफ़ तौर पर मंदी का असर है जो अब सेना के जवानों के ऊपर भी दिखने लगा है। लेकिन मोदीसरकार ये मानने को तैयार ही नहीं है कि देश में मंदी है! जबकि एक-एक करके सभी सरकारी कंपनियों और संस्थाओं में पैसे की कमी साफ़ दिखने लगी है। यह दूसरा मौका है जब अर्द्धसैनिक बलों के कर्मियों के भत्तों का भुगतान रोक दिया गया है। पिछले साल सितंबर 2019 में सीआरपीएफ के 3 लाख जवानों का 3600 रुपये का राशन भत्ता रोक दिया गया था। मामला बढ़ने के बाद अगले महीने यानि अक्टूबर महीने में सरकार ने फंड जारी किया था। सशस्त्र बल के कर्मचारियों के जो भत्ते रोके गए हैं उसमें सभी तरह के भत्ते शामिल हैं। जिसमें बच्चों की पढाई, लीव कांशेसन आदि भत्ते शामिल हैं। एसएसबी भूटान-नेपाल से सटी भारत की 2450 किलोमीटर सीमा की रक्षा करते हैं।
बुर्के में शूर्पनखा
भले दिल्ली में राम के आगे हनुमान को खड़ा करने के बावजूद भाजपा पिछड़ी हो लेकिन नेताओं पर कोई फर्क नहीं पड़ा। उत्तर प्रदेश के दर्जा प्राप्त मंत्री रघुराज सिंह ने श्रीलंका की तरह भारत में भी बुर्के पर प्रतिबंध लगाने की मांग करते हुए कहा है कि मुस्लिम महिलाएं बुर्का पहनती हैं, क्योंकि वे रावण की बहन शूपर्णखा की वंशज हैं। रघुराज सिंह ने कहा कि इसका इस्तेमाल आतंकवादियों द्वारा किया जाता है, लिहाजा इस पर प्रतिबंध लगना चाहिए। बकौल रघुराज बुर्का पहनने की प्रथा अरब से भारत आई है। भयंकर किस्म के इन बयानवीर ने पिछले महीने भी ऐसा ही बयान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ नारे लगाने वाले को जिंदा दफनाने की धमकी दी थी। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह को यह बयान रास नहीं आया है और रघुराज सिंह को अनुशासनहीनता का नोटिस थमाकर पूछा है कि क्यों न उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया जाये। वैसे जिस पर्दा प्रथा पर श्रीमानजी अपना ज्ञान दे रहे थे उन्हें नहीं मालूम कि 1441 साल पहले इस्लाम के उदय से भी बहुत पहले करीब 500 वर्ष ईसा पूर्व घूंघट का इतिहास मिलता है जब गुप्तवंश के शासन काल में शूद्रक ने मृच्छकटिकम् में घूँघट अर्थात परदे का जिक्र अवगुंठन कहकर किया है। फ़िलहाल मनोरंजन के लिए ऐसे बयानों का आनंद लेते रहना चाहिए।
दागी परिचय
शीर्ष अदालत के निर्देश के बाद अब राजनीतिक दल अपने दागी उम्मीदवारों/सांसदों/ विधायकों का परिचय सार्वजनिक मंच पर करेंगे। इसलिए दागदार शब्दों की परिभाषा संसदीय होनी चाहिए। मुलाहिजा फरमाएं-
तड़ीपार : कानून में विश्वास रखने वाले नेताजी द्वारा अदालत के आदेश पर अंतरथाना/ अंतरजिला/ अंतरराज्यीय स्तर पर पर्यटन किया जाना।
बलात्कार : लडकपन में हुई गलती।
हत्या : मोक्ष दिलाने में सहयोग
चोरी : अतिरिक्त धन संपत्ति को समाज सेवा के लिए छिपकर लेना।
दंगा-फसाद : धर्म, जाति, क्षेत्र, भाषा के स्वाभिमान के लिए संघर्ष।
बिना टिकट यात्रा : अपनी संपत्ति मानकर मुफ्त रेल व बस यात्रा।
तस्करी : राजस्व नियोजन में योगदान
बाहुबली : भीम के अवतार
रंगदारी/हफ्ताखोरी : जन सुरक्षा शुल्क
पुछल्ला : दिल्ली की लड़ाई में झुठलर पर मफलर की जीत।